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________________ लेश्या - विषयानुक्रम - ४. गंध द्वार ३१७ भावार्थ - जैसा परिणत आम्रक रस - पके हुए आम का रस होता है अथवा जैसा पक्वकपित्थ - पके हुए कविठ का रस (खटमीठा) होता है, उससे भी अनन्त गुण खट-मीठा तेजो लेश्या का रस जानना चाहिए। वरवारुणीए व रसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ। महुमेरयस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं॥१४॥ कठिन शब्दार्थ - वरवारुणीए - वरवारुणी रस - उत्तम मदिरा, विविहाण व आसवाणविविध आसवों का, महुमेरयस्स - मधु (मद्य विशेष या शहद) मैरेयक (सरके) का, परएणंबढ़ कर-अनंतगुणा, पम्हाए - पद्मलेश्या का। भावार्थ - वरवारुणी रस-उच्च कोटि की मदिरा अथवा अनेक प्रकार के आसवों का अथवा मधु और मेरक का जैसा रस होता है, उससे भी बढ़कर, पद्म-लेश्या का रस होता है। खजूर-मुद्दियरसो, खीररसो खंड सक्कररसो वा। एतो वि अणंतगुणो, रसो उ सुक्काए णायव्वो॥१५॥ • कठिन शब्दार्थ - खजूर-मुद्दियरसो - खजूर और द्राक्षां (किशमिश) का रस, खीररसोक्षीर का रस, खंड सक्कररसो - खांड और शक्कर का रस, सुक्काए - शुक्ललेश्या का। भावार्थ - जैसा पिंडखजूर और मृद्विका अर्थात् दाख का रस, दूध अथवा खांड और मिश्री का रस मधुर होता है, उससे भी अनन्त गुण मधुर रस शुक्ल लेश्या का जानना चाहिए। विवेचन - कृष्णलेश्या का कटु, नीललेश्या का तीखा (चरपरा), कापोत लेश्या का कषैला, तेजोलेश्या का खटमीठा, पद्मलेश्या का अम्ल कषैला और शुक्ललेश्या का मधुर रस होता है। गंधद्वार - जह गोमडस्स गंधो, सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स। एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं॥१६॥ कठिन शब्दार्थ - गोमडस्स - गोमृत - मृत गाय की, गंधो - गंध, सुणगमडस्स - शुनकमृत - मरे हुए कुत्ते की, अहिमडस्स - अहिमृत - मरे हुए सर्प की, लेसाणं - लेश्याओं की, अप्पसत्थाणं - अप्रशस्त। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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