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________________ ३१८ उत्तराध्ययन सूत्र - चौतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 भावार्थ - जिस प्रकार गोमृत-गाय के मृतक-कलेवर की अथवा जैसी कुत्ते के मृतकशरीर की और सांप के मृतक-शरीर की दुर्गन्ध अप्रशस्त, लेश्याओं (क्रमशः कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या) की होती है। जह सुरहिकुसुमगंधो, गंधवासाण पिस्समाणाणं। .. एत्तो वि अणंतगुणो, पसत्थ-लेसाण तिण्हं पि॥१७॥ कठिन शब्दार्थ - सुरहिकुसुमगंधो - सुगंधित पुष्पों की गन्ध, गंधवासाण - सुवासित गंध द्रव्यों की, पिस्समाणाणं - पीसे जाते हुए, तिण्हपिं - तीनों ही, पसत्थ - प्रशस्त। भावार्थ - जैसी सुगन्धित फूलों की सुगन्ध होती है अथवा पीसे जाते हुए चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों की जैसी सुगन्ध होती है, उससे भी अनन्त गुण सुगन्ध तीनों प्रशस्त लेश्याओं (तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या) की होती है। - विवेचन - तीन अप्रशस्त लेश्याओं (कृष्ण, नील और कापोत लेश्या) की गंध गो, . कुक्कुट, सर्प आदि के मृत कलेवर से भी अनंतगुणी दुर्गंध वाली होती है जबकि तीनों प्रशस्त लेश्याओं (तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या) की गंध सुगंधित पुष्पों एवं पीसे जा रहे सुवासित द्रव्यों की सुगंध से भी अनंतगुणी अधिक सुगंध वाली होती है। ५ स्पर्शद्वार जह करगयस्स फासो, गोजिन्भाए व सागपत्ताणं। एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥१८॥ कठिन शब्दार्थ - करगयस्स - करवत (करौत) का, फासो - स्पर्श, गोजिन्माए - गाय की जीभ का, सागपत्ताणं - शाक नामक वनस्पति के पत्तों का। . भावार्थ - जिस प्रकार करवत नामक शस्त्र का अथवा गाय की जिह्वा का और शाक नाम की वस्पति के पत्तों का स्पर्श कर्कश (खुरदरा) होता है उससे भी अनन्त गुण कर्कश स्पर्श अप्रशस्त लेश्याओं (कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या) का होता है। जह बूरस्स व फासो, णवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं। एत्तो वि अणंतगुणो, पमत्थ-लेसाण तिण्हं पि॥१६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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