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उत्तराध्ययन सूत्र - चौतीसवाँ अध्ययन
३. रस द्वार
जह कडुय - तुंबगरसो, णिंबरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अनंतगुणो, रसो य किण्हाए णायव्वो ॥१०॥
कठिन शब्दार्थ - कडुय-तुम्बगरसो - कड़वे तुम्बे का रस, लिंबरसो - नीम का रस, इससे भी, अनंतगुणोजानना चाहिए ।
कडुयरोहिणिरसो - कड़वी रोहिणी (नीमगिलोय) का रस, एत्तो वि अनन्तगुणा, रसो- रस, किण्हाए - कृष्ण लेश्या का, णायव्वो
भावार्थ - जैसा कडुवे तुम्बे का रस, नीम का रस अथवा कटु-रोहिणी का रस होता है, उससे भी अनन्त गुण कडुआ कृष्ण-लेश्या का रस जानना चाहिए।
जह तिगडुयस्स य रसो, तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अनंतगुणो, रसो उ णीलाए णायव्वो ॥११॥
कठिन शब्दार्थ - तिगडुयस्स - त्रिकटुक (सोंठ, पिप्पल और कालीमिर्च) का, तिक्खोतिक्त - तीखा, हत्थिपिप्पलीए - हस्ती (गज) पीपल का, णीलाए - नीललेश्या का ।
भावार्थ - जैसा त्रिकटुक (सौंठ, मिर्च और पीपर) का और जिस प्रकार हस्तिपीपल (गज - पीपल) का रस तीक्ष्ण होता है, इससे भी अनन्त गुण तीक्ष्ण नीलं लेश्या का रस जानना चाहिए ।
जह तरुण - अंबगरसो, तुवर- कविट्ठस्स वावि जारिसओ ।
एत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ काऊए णायव्वो ॥१२॥
कठिन शब्दार्थ - तरुण- अंबगरसो - कच्चे (अपक्व ) आम का रस, तुवर- कविट्ठस्सकच्चे कसैल कपित्थ फल (कवीठे) का, जारिसओ जैसा, काउए - कापोत लेश्या का । भावार्थ - जैसा कच्चे आम का रस अथवा जैसा कच्चे तुवर का और कच्चे कविठ का रस होता है उससे भी अनन्त गुण खट्टा, कापोत- लेश्या का रस जानना चाहिए ।
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जह परिणयंबग रसो, पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसओ ।
एत्तो वि अनंतगुणो, रसो उ तेऊए णायेव्वो ॥ १३ ॥
कठिन शब्दार्थ- परिणयंबग कपित्थफल का, तेऊए - तेजोलेश्या का ।
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पके हुए आम का, पक्ककविट्ठस्स
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पके हुए
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