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लेश्या विषयानुक्रम - २. वर्ण द्वार
हिंगुलयधाउ - संकासा, तरुणाइच्चसण्णिभा ।
सुयतुंडपईवणिभा, तेऊलेसा उ वण्णओ ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - हिंगुलयधाउसंकासा - हिंगुलक धातु संकाशा - हिंगलु तथा धातु-गेरु के सदृश, तरुणाइच्चसण्णिभा - तरुण ( उदय होते हुए) सूर्य के समान, सुयतुंडपईवणिभा - शुकतुण्डप्रदीपनिभा - तोंते की चोंच या जलते हुए दीपक के समान ।
भावार्थ - हिंगुल तथा गैरिक धातु के समान, उगते हुए तरुण सूर्य के समान और तोते की चोंच के समान तथा दीपक की शिखा के समान तेजोलेश्या का वर्णन होता है।
हरियालभेयसंकासा, हलिद्दाभेयसमप्पभा ।
सणासण- कुसुमणिभा; पम्हलेसा उ वण्णओ ॥ ८ ॥
कठिन शब्दार्थ - हरियालभेयसंकासा - हरितालभेदसंकाशा - हरिताल के टुकड़े जैसी, हलिद्दाभेयसमप्पभा - हरिद्राभेदसमप्रभा हरिद्रा (हल्दी) के टुकड़े के समान, सणासणकुसुमणिभा - सण और असन (बीजक) के फूल के समान ।
भावार्थ - हरताल के टुकड़े के समान, हल्दी के टुकड़े के समान तथा सण और असण नामक वनस्पति के फूल के समान पद्म लेश्या का वर्णन होता है। संखंककुंद-संकासा, खीरपूरसमप्पभा । रययहारसंकासा, सुक्कलेसा उ वण्णओ ॥ ६ ॥
कठिन शब्दार्थ - संखंककुंद-संकासा - शंकुन्दसंकाशा शंख, अंकरत्न - स्फटिक तुल्य श्वेत रत्न विशेष एवं कुन्द के फूल के सदृश, खीरपूरसमप्पभा - क्षीरपूरसमप्रभा दूध की धारा के समान प्रभावाली, रययहारसंकासा रजतहार संकाशा - रजत (चांदी) एवं हार
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(मोती की माला) के समान ।
भावार्थ - शंख और अंक नामक रत्न विशेष तथा कुन्द-फूल के समान, दूध की धारा की प्रभा के समान और चांदी के हार के समान शुक्ल लेश्या का वर्णन होता है।
विवेचन छह लेश्याओं के रंग प्रधानता के आधार पर इस प्रकार हैं- कृष्ण लेश्या का
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रंग काला, नील लेश्या का नीला, कापोत लेश्या का कुछ काला कुछ लाल, तेजोलेश्या का लाल, पद्मलेश्या का पीला और शुक्ललेश्या का श्वेत होता है। भगवती सूत्र शतक ७ उद्देशक ३ के अनुसार प्रत्येक लेश्या में एक वर्ण मुख्य रूप से और शेष चार वर्ण गौण रूप से पाए जाते हैं।
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