________________
३१४
उत्तराध्ययन सूत्र - चौतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
.. १ वर्ण द्वार - लेश्याओं के वर्ण जीमूय-णिद्धसंकासा, गवलरिट्ठग-सण्णिभा। खंजांजणणयणणिभा, किण्ह-लेसा उ वण्णओ॥४॥
कठिन शब्दार्थ - जीमूय-णिद्धसंकासा - जीमूतस्निग्धसंकाशा - सजल काले मेघ के समान. गवलरिट्ठग-सण्णिभा - गवलरिष्टकसंनिभा - भैंस के सींग एवं अरिष्टक (कौए या अरीठे के फल) के सदृश, खंजांजणणयणणिभा - खञ्जन-अंजन-नयन निभा - खंजन-गाड़ी के ओंगन कीट, अंजन - काजल और आंख की कीकी के समान काली। ...
भावार्थ - वर्ण (रूप) की अपेक्षा कृष्ण-लेश्या जल से भरे मेघ के समान, भेंसे के सींग रिष्ट-द्रोणकाक तथा अरीठा नाम का फल विशेष के रंग के समान और गाड़ी के औषण, काजल और आँख की पुतली के समान काली होती है।
णीलासोग-संकासा, चासपिच्छ-समप्पभा। वेरुलियणिद्धसंकासा, णीललेसा उ वण्णओ॥५॥
कठिन शब्दार्थ - णीलासोग-संकासा - नील अशोक संकाशा - नीले अशोक वृक्ष के समान, चासपिच्छ-समप्पभा - चासपिच्छसमप्रभा - चाष पक्षी के पंख जैसी प्रभा वाली, वेरुलियणिद्धसंकासा - वैडूर्य स्निग्ध संकाशा - स्निग्ध वैडूर्य रत्न के सदृश।
. भावार्थ - नीले अशोक वृक्ष के समान, चाष पक्षी की पंख की कान्ति के समान और दीप्त वैडूर्य मणि के समान, नील-लेश्या का वर्ण (रंग) होता है।
अयसीपुप्फ-संकासा, कोइलच्छद-सण्णिभा। पारेवयगीवणिभा, काऊलेसा उ वण्णओ॥६॥
कठिन शब्दार्थ - अयसीपुप्फ-संकासा - अतसीपुष्पसंकाशा - अलसी के फूल जैसी, कोइलच्छद सण्णिमा - कोकिलच्छद संनिभा - कोयल की पंख सी, पारेवयगीयणिभा - पारावतग्रीवनीभा - कबूतर की गर्दन के समान।
भावार्थ - अलसी के फूल के समान, कोयल के पांख के समान और कबूतर की गर्दन के समान, कापोत लेश्या का वर्ण होता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org