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लेश्या - विषयानुक्रम - १. नाम द्वार
३१३ GOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOctor पुद्गलों में कषाय को बढ़ाने की शक्ति रहती है। जैसे पित्त के प्रकोप से क्रोध की वृद्धि होती है। द्रव्य लेश्या के छह भेद हैं। क्योंकि इन लेश्याओं के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि का विस्तार पूर्वक वर्णन इस अध्ययन में दिया गया है। मनुष्य और तिर्यंच में द्रव्यलेश्या का परिवर्तन होता है। देवता और नैरयिक में द्रव्य लेश्या अवस्थित होती है।
भावलेश्या - योगान्तर्गत कृष्णादि द्रव्य लेश्या के संयोग से होने वाला आत्मा का परिणाम विशेष भाव लेश्या कहलाती है। इसके दो भेद हैं - १. विशुद्ध भावलेश्या और २. अविशुद्ध भावलेश्या। अकलुषित द्रव्य लेश्या के सम्बन्ध होने पर कषाय के क्षय, उपशम का क्षयोपशम से होने वाला आत्मा का शुभ परिणाम अविशुद्ध भाव लेश्या है। इनके छह भेद हैं। इनमें से कृष्ण, नील और कापोत अविशुद्ध भाव लेश्या है और तेजो, पद्म और शुक्ल यह विशुद्ध भाव लेश्या है।
विषयानुक्रम णामाई वण्ण-रस-गंध-फास-परिणामलक्खणं। ठाणं ठिई गई चाउं, लेसाणं तु सुणेह मे॥२॥
कठिन शब्दार्थ - णामाई - नाम, वण्ण - वर्ण, रस - रस, गंध - गंध, फास - स्पर्श, परिणाम - परिणाम, लक्खणं - लक्षण, ठाणं - स्थान, ठिई - स्थिति, गई - गति,
च - और, आउं - आयु, लेसाणं - लेश्याओं के। .. भावार्थ - लेश्याओं के नाम, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति और आयु, इन ग्यारह द्वारों से लेश्याओं का वर्णन किया जायगा। अतः मुझ से सुनो।
१. नाम द्वार - लेश्याओं के नाम किण्हा णीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य। सुक्कलेसा य छट्ठा य, णामाइं तु जहक्कमं॥३॥
कठिन शब्दार्थ - किण्हा - कृष्ण, णीला - नील, काऊ - कापोत, तेऊ - तेजो, पम्हा - पद्म, सुक्कलेसा - शुक्ललेश्या, णामाई - नाम।
भावार्थ - छहों लेश्याओं के नाम यथाक्रम इस प्रकार हैं। यथा - कृष्ण-लेश्या, नीललेश्या, कापोत-लेश्या, तेजो-लेश्या, पद्म-लेश्या और छठी शुक्ल-लेश्या है।
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