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लेसज्झयणं णामं चउतीसइमं अज्झयणं
लेश्या नामक चौतीसवां अध्ययन प्रस्तुत अध्ययन में छह लेश्याओं का ११ द्वारों के माध्यम से व्यवस्थित रूप से निरूपण किया गया है।
लेश्या एक ऐसा पारिभाषिक शब्द है जिससे जीव की मनोगत एवं विचार वर्णगत तरतमता का पता चलता है। यह एक प्रकार का थर्मामीटर है। लेश्याओं का यह वर्णन आधुनिक मनोविश्लेषकों के लिए बहुत ही उपयोगी है। इस अध्ययन की प्रथम गाथा इस प्रकार है -
लेश्या-स्वरूप लेसज्झयणं पवक्खामि, आणुपुव्विं जहक्कमं। छण्हं पि कम्म-लेसाणं, अणुभावे सुणेह मे॥१॥
कठिन शब्दार्थ - लेसज्झयणं - लेश्या अध्ययन का, पवक्खामि - वर्णन करूंगा, आणुपुव्विं - अनुक्रम से, जहक्कम - यथाक्रम से, छण्हं पि - छहों, कम्म-लेसाणं - कर्म लेश्याओं के, अणुभावे - अनुभाव को, मे - मुझसे, सुणेह - सुनो।
भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं कि - हे आयुष्मन् जम्बू! मैं आनुपूर्वी-अनुक्रम एवं यथाक्रम से लेश्या अध्ययन का वर्णन करूंगा। इसलिए छहों कर्म लेश्याओं के अनुभाव (तीव्र-मंद आदि रस) को, मुझ से सुनो।
विवेचन - प्रश्न - लेश्या किसे कहते हैं? उत्तर - कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात, परिणामो य आत्मनः।
स्फटिकस्येव तत्रायं, लेश्याशब्दः प्रवर्तते॥१॥ स्फटिक मणि सफेद होती है, उसमें जिस रंग का डोरा पिरोया जाय वह उसी रंग की दिखाई देती है। इसी प्रकार शुद्ध आत्मा के साथ जिससे कर्मों का संबंध हो, उसे लेश्या कहते हैं। द्रव्य और भाव की अपेक्षा लेश्या दो प्रकार की है। द्रव्य लेश्या कर्म वर्गणा रूप तथा कर्म निष्यन्द रूप एवं योग परिणाम रूप हैं। तत्त्वार्थ सूत्र में तो बतलाया गया है कि - 'कषायानुरजित योग परिणामो लेश्या' आत्मा में रहे हुए क्रोधादि कषाय को लेश्या बढ़ाती है। योगान्तर्गत
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