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कर्मप्रकृति - कर्मों की स्थितियाँ
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कठिन शब्दार्थ - सव्वजीवाण - सभी जीवों के, संगहे - संग्रह की अपेक्षा, छहिसागयंछह दिशाओं में रहे हुए, सव्वेसु वि पएसेसु - सभी प्रदेशों के साथ, सव्वेण - सर्व प्रकार से, बद्धगं - बद्ध हो जाते हैं।
भावार्थ - सभी जीवों के सभी ज्ञानावरणीयादि कर्म, संग्रह की अपेक्षा दिशागत - पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर और नीचे, इन छहों दिशाओं में स्थित हैं वे सभी आत्मप्रदेशों के साथ प्रकृति, स्थिति आदि सभी प्रकार से बंधे हुए हैं।
विवेचन - इस गाथा में यह बतलाया गया है कि - संसारी समस्त जीव कषाय और योग के निमित्त से प्रतिसमय ज्ञानावरणीयादि आठ कर्म प्रकृति रूप कर्म पुद्गलों का ग्रहण करते रहते हैं। ये जीव आकाश के जितने प्रदेशों को रोकते हुए हैं वहीं से कर्म पुद्गलों को खींचता है
और दस ही दिशाओं से व्यवस्थित रूप से खींचता है। यद्यपि गाथा में छह दिशाओं का ही कथन किया है तथापि दिशा शब्द से विदिशा का भी ग्रहण कर लेना चाहिए। ____ गाथा में 'सव्वं सव्वेण बद्धगं' शब्द दिया है। इसका अर्थ दिया है कि - एक आत्मा के असंख्यात प्रदेश होते हैं। वे असंख्यात प्रदेश ही उन कर्म पुद्गलों को खींचते हैं और वे कर्म पुद्गल भी आत्मा के असंख्यात प्रदेशों पर ही चिपक जाते हैं और चिपक कर क्षीर-नीर की। तरह एकमेक हो जाते हैं। - _ जम्बूद्वीप का मेरु पर्वत सम्पूर्ण तिरछा लोक के मध्य में है। वह धरती पर १० हजार योजन का चौड़ा है। उसके ठीक बीचोबीच में आठ रुचक प्रदेश हैं वे गोस्तनाकार हैं। चार ऊपर की तरफ और चार नीचे की तरफ हैं इन्हीं से चार दिशा, चार विदिशा और अधोदिशा और ऊर्ध्व दिशा ये दस दिशाएँ निकलती हैं। इन रुचक प्रदेशों की उपमा से असंख्य प्रदेशात्मक प्रत्येक आत्मा के ठीक बीचोबीच (प्रायः नाभि प्रदेश के समीप) आठ रुचक प्रदेश हैं। कितनेक आचार्यों की मान्यता है कि - ये आठ रुचक प्रदेश कर्मों के लेप से रहित हैं। परन्तु यह मान्यता शास्त्र सम्मत्त नहीं है। यह बात इस गाथा में दिये हुए 'सव्वं सव्वेण बद्धगं' पाठ से स्पष्ट हो जाती है कि - आत्मा के सभी प्रदेश सभी कर्म परमाणुओं से लिप्त हैं अर्थात् आत्मा का कोई भी प्रदेश कर्म लेप से रहित नहीं है। यही बात भगवती सूत्र शतक ६ उद्देशक ३ से स्पष्ट होती है।
. कर्मों की स्थितियाँ उदहीसरिसणामाणं, तीसई कोडिकोडीओ। उक्कोसिया ठिई होइ, अंतोमुहुत्तं जहणिया॥१६॥
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