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उत्तराध्ययन सूत्र - तेतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
आवरणिजाण दुण्हं पि, वेयणिजे तहेव य। अंतराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - उदहीसरिसणामाणं - उदधि सदृश नाम - सागरोपम की, तीसई - तीस, कोडिकोडीओ - कोड़ाकोड़ी, उक्कोसिया - उत्कृष्ट, ठिई - स्थिति, अंतोमुहत्तं - अन्तर्मुहूर्त, जहणिया - जघन्य, आवरणिज्जाण - आवरणीय, दुण्हं पि - दोनों। ___भावार्थ - दोनों आवरणीय (ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय) कर्मों की तथा वेदनीय की
और अन्तराय-कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त होती है और इनकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ोकोड़ी सागरोपम की कही गई है।
विवेचन - पल्योपम और सागरोपम किसे कहते हैं?
उत्तर - एक करोड़ पूर्व वर्ष की आयुष्य से अधिक हो, उसे असंख्यात वर्ष की आयुष्य कहते हैं। उसको बतलाने के लिए उपमा से बतलाया जाता है। पल्य (छबड़ा अथवा गहरा खड्डा) की उपमा से बतलाया जाय वह पल्योपम और सागर (समुद्र) की उपमा से जो बताया . जाय, उसे सागरोपम कहते हैं। पल्योपम की व्याख्या पहले की जाती है - ___उत्सेधांगुल से एक योजन लंबा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा कोई कुआं हो उसमें एक दिन से लेकर सात दिन तक के देवगुरु-उत्तरकुरु के युगलिक के केशों को ढूंस-ठूस कर भरा जाय। केशों के असंख्यात टुकड़े किये जाय जो कि छद्मस्थ के दृष्टिगोचर न हों। उनमें से प्रत्येक बालाग्र खंड को सौ-सौ वर्ष में निकाला जाय। इस प्रकार निकालते-निकालते वह कुआं जितने काल में खाली हो जाय, उसे सूक्ष्म अद्धा पल्योपम कहते हैं। इसमें असंख्यात वर्ष कोटी परिमाण काल होता है। ऐसे दस कोड़ाकोड़ी सूक्ष्म अद्धा पल्योपम का एक सूक्ष्म अद्धा सागरोपम होता है। जीवों की कर्म स्थिति, कायस्थिति, भव स्थिति, सूक्ष्म अद्धा पल्योपम और सूक्ष्म अद्धा सागरोपम से मापी जाती है।
(दस करोड़ को एक करोड़ से गुणा करना दस कोड़ा कोड़ी कहलाता है जैसे कि - मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सित्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम है - यहाँ सित्तर करोड़ को एक करोड़ से गुणा करना चाहिए किन्तु सित्तर को सित्तर करोड़ से गुणा नहीं करना चाहिए। किन्तु एक करोड़ से ही गुणा करना चाहिए।) अनुयोगद्वार सूत्र में पल्योपम और सागरोपम के तीनतीन भेद बतलाये गये हैं, यथा - उद्धार, अद्धा और क्षेत्र।
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