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समुद्रपालीय - विरक्ति और दीक्षा
विरक्ति और दीक्षा
अह अण्णया कयाइ, पासायालोयणे ठिओ।
प्रासाद के
कठिन शब्दार्थ ठिओ
वज्झ - मंडण - सोभागं, वज्झं पासइ वज्झगं ॥ ८ ॥ अण्णया कयाइ किसी एक दिन, पासायलोयणे बैठा था, वज्झ - मंडण - सोभागं वध्यजनोचित मण्डनों (चिह्नों) से अपराधी को, पासइ - देखता है, वज्झगं
गवाक्ष में, शोभित, वज्झं - वध्य
वध स्थान की ओर
जाते हुए।
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भावार्थ - इसके बाद किसी एक समय प्रासाद (भवन) के गवाक्ष (खिड़की) में बैठे हुए समुद्रपाल ने मृत्यु दण्ड पाये हुए पुरुष के योग्य रक्त चन्दन, कनेर की माला आदि मृत्यु -चिह्नों सेक् • एक अपराधी पुरुष को मारने के लिए फांसी के स्थान पर ले जाते हुए देखा । विवेचन - 'वज्झ मंडण सोभागं ' शब्द से प्राचीनकाल की दण्ड प्रक्रिया का संकेत • मिलता है। सूत्रकृतांग चूर्णि तथा उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति पत्र ४८३ के अनुसार जिस अपराधी को वध मृत्युदण्ड की सजा दी जाती थी उसे गले में लाल कनेर की माला पहनाई जाती, शरीर पर लाल चंदन का लेप करके लाल वस्त्र पहना कर नगर में घुमाते हुए उसको मृत्युदण्ड दिये जाने की घोषणा करते हुए वध्यस्थान . श्मशान की ओर ले जाया जाता था ।
तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्बवी ।
अहोऽसुहाण कम्माणं, णिजाणं पावगं इमं ॥६॥
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कठिन शब्दार्थ - पासिऊण - देख कर, संविग्गो - संविग्न - संवेग - मुक्ति की अभिलाषा को प्राप्त, इणमब्बवी इस प्रकार कहने लगा, असुहाण
अशुभ, कम्माणं
कर्मों
का, णिजाणं - निर्याण - परिणाम, पावगं पापरूप ।
भावार्थ उस अपराधी को देख कर समुद्रपाल संवेग को प्राप्त हो कर इस प्रकार कहने
लगा कि अहो! अशुभ कर्मों का निर्याण अन्तिम फल पाप रूप ही होता है जैसा कि यह प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है।
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संबुद्धो सो तहिं भगवं, परमसंवेगमागओ । आपुच्छऽम्मापियरो, पव्वए अणगारियं ॥ १० ॥
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