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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - इक्कीसवां अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 कठिन शब्दार्थ - संबुद्धो - सम्बुद्ध - बोध को प्राप्त हुआ, भगवं - माहात्म्यवान्ऐश्वर्य सम्पन्न, परमसंवेगं - परम संवेग को, आगओ - प्राप्त हुआ, आपुच्छ - पूछ कर, अम्मापियरो - माता पिता से, पव्वए - अंगीकार कर ली, अणगारियं - अनगारिता (मुनि दीक्षा) को। भावार्थ - वहाँ प्रासाद के गवाक्ष में बैठा हुआ ऐश्वर्य सम्पन्न वह समुद्रपाल बोध को प्राप्त हुआ और परम संवेग को प्राप्त हुआ। इसके बाद अपने माता-पिता को पूछ कर उसने अनगार वृत्ति अंगीकार कर ली। विवेचन - प्रस्तुत तीन गाथाओं (क्र. ८ से १० तक) में स्वर्गीय सुखों का अनुभव करते . समुद्रपाल को सहसा संवेग, वैराग्य, प्रतिबोध एवं दीक्षा के भाव कैसे उत्पन्न हुए? इसका वर्णन किया गया है। शंका - समुद्रपाल के लिए भगवं' शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है? समाधान - 'भग' शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। यहां भगवान् शब्द तीर्थंकर, ज्ञानी पुरुष या केवली के अर्थ में प्रयुक्त नहीं होकर माहात्म्यवान्, ऐश्वयशाली, धर्मिष्ठ, यशस्वी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। मुनिधर्म शिक्षा जहित्तु सगंथमहाकिलेसं, महंतमोहं कसिणं भयावहं। परियायधम्मं चाभिरोयएज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य॥११॥ कठिन शब्दार्थ - जहित्तु - छोड़कर, सग्गंथं (संगं च) - परिग्रह एवं आसक्ति को, महाकिलेसं - महाक्लेशकारी, महंतमोहं - महा मोहजनक, कसिणं - सम्पूर्ण अथवा कृष्ण लेश्या रूप, भयावहं - भयावह, परियायधम्म - पर्याय धर्म - प्रव्रज्या रूप मुनि धर्म में, अभिरोयएज्जा - अभिरुचि रखे, वयाणि - व्रतों में, सीलाणि - शीलों में, परीसहे - परीषहों में। भावार्थ - महा क्लेशकारी, महा मोहोत्पादक, अनेक भयों को उत्पन्न करने वाले सम्पूर्ण परिग्रह एवं स्वजनादि के प्रतिबन्ध को छोड़ कर वे प्रव्रज्या धर्म में लीन रहने लगे, पाँच महाव्रतों और पिण्ड-विशुद्ध्यादि उत्तर-गुणों का पालन करने लगे तथा परीषहों को सहन करने लगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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