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उत्तराध्ययन सूत्र - बत्तीसवाँ अध्ययन
रुवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खण-सण्णियोगे ।
ar वियोगे य कहं सुहं से, संभोग काले य अतित्तिलाभे ॥ २८ ॥
कठिन शब्दार्थ - रूवाणुवाएण रूपानुपात - रूप में अनुपात - अनुराग, परिग्गहेण परिग्रह के कारण, उप्पायने उत्पादन में, रक्खण-सण्णियोगे - संरक्षण और सन्नियोग (व्यापार-विनिमय) में, वियोगे - वियोग, कहं कैसे, सुहं सुख को, संभोग काले - उपभोग काल में, अतित्तिलाभे - अतृप्ति ही प्राप्त होती है।
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भावार्थ रूप में आसक्त, परिग्रह में मूर्च्छित बने हुए को उस रूपवान् पदार्थ को उत्पन्न करने में, उसकी रक्षा करने में, सम्यक् प्रकार से उपयोग करने में और उसका विनाश हो जाने पर तथा वियोग हो जाने पर कैसे सुख को प्राप्त हो सकता है अर्थात् सुख प्राप्त नहीं हो सकता, प्रत्युत दुःख ही होता है और उसका उपभोग करने के समय में भी उसे तृप्ति न होने के कारण दुःख ही होता है ।
रूवे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो ण उवेइ तुट्ठि ।
परिग्रह में,
अतुट्ठि - दोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययइ अदत्तं ॥ २६ ॥ कठिन शब्दार्थ - रूवे रूप में, अतित् अतृप्त, परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो सक्त उपसक्त आसक्त और अत्यंत आसक्त, तुट्ठि - संतुष्टि, अतुट्ठिदोसेण - असंतोष के दोष से, दुही - दुःखी, परस्स - दूसरों की, आययइ है, अदत्तं - बिना दिये, लोभाविले - लोभ से आविल (व्याकुल) व्यक्ति ।
ग्रहण करता
भावार्थ रूप में अतृप्त बना हुआ और रूप विषयक परिग्रह में आसक्त एवं विशेष आसक्त बना हुआ जीव संतोष को प्राप्त नहीं होता। अतुष्टिदोष असंतोष रूपी दोष से दुःखी बना हुआ तथा लोभ से मलिन चित्त वाला जीव दूसरों की अदत्त - बिना दी हुई वस्तुओं को ग्रहण करता है (अपनी इष्ट वस्तु को प्राप्त करने के लिए चोरी भी करता है ) ।
तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य ।
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मायामुसं वइ लोभदोसा, तत्था वि दुक्खा ण विमुच्चइ से ॥ ३० ॥
कठिन शब्दार्थ - तहाभिभूयस्स - तृष्णा से अभिभूत, अदत्तहारिणो - दूसरों की वस्तुएं हरने (चुराने वाले, मायामुखं - कपट और झूठ (माया मृषावाद), वड्डइ है, लोभदोसा - लोभ के दोष से ।
बढ़ जाता
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