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उत्तराध्ययन सूत्र - बत्तीसवाँ अध्ययन
भावार्थ भले ही मन वचन काया रूप तीन गुप्तियों से गुप्त ऐसे समर्थ मुनि जो वस्त्राभूषणों से सुशोभित एवं मनोहर देवांगनाओं द्वारा भी अलंकृत और क्षोभित अर्थात् ब्रह्मचर्य व्रत से डिगाये न जा सकते हों, तो भी एकान्त हितकारी ऐसा जान कर मुनियों के लिए विविक्त वास (स्त्री, पंशु, नपुंसक से रहित स्थान) का सेवन करना ही प्रशस्त बतलाया गया है। मोक्खाभिकंखिस्स उ माणवस्स, संसार- भीरुस्स ठियस्स धम्मे ।
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यारिसं दुत्तरमत्थि लोए, जहित्थिओ बालमणोहराओ ॥ १७ ॥
कठिन शब्दार्थ - मोक्खाभिकंखिस्स - मोक्षाभिलाषी, माणवस्स - मानव के, संसार भीरुस्स - संसार से भीरु, ठियस्स धम्मे - धर्म में स्थित, एयारिसं - इसके समान, दुत्तरं दुस्तर, जह - जितनी कि, इत्थीओ- स्त्रियाँ, बालमणोहराओ - अज्ञानियों के मन को हरण करने वाली ।
भावार्थ - मोक्ष की इच्छा रखने वाले, संसार से डरने वाले और धर्म में स्थित पुरुष के लिये इस लोक में एतादृश ऐसा दुस्तर कठिन कार्य कोई नहीं जितना अज्ञानी जीवों के मन को हरण करने वाली स्त्रियों को त्यागना कठिन है।
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एए य संगे समइक्कमित्ता, सुहुत्तरा चेव भवंति सेसा ।
जहा महासागरमुत्तरित्ता, णई भवे अवि गंगा समाणा ॥ १८ ॥
कठिन शब्दार्थ - संगे संगों का, समइक्कमित्ता - सम्यक् अतिक्रमण करने पर, सुहुत्तरा - सुखोत्तर - सुख से पार करने योग्य, महासागरं महासागर को, उत्तरित्ता करने पर, ई - नदी, गंगा समाणा - गंगा के समान ।
पार
भावार्थ - जैसे महासागर को तिर कर पार हो जाने के बाद गंगा सरीखी नदी को पार करना सरल है वैसे ही इन संगों (स्त्रियों की आसक्ति) को छोड़ देने के बाद दूसरे प्रकार की सभी आसक्तियाँ सुख से पार करने योग्य होती हैं।
विवेचन - प्रस्तुत गाथाओं ( क्रं. १० से १८ तक) में चारित्र मोह को जड़ से उखाड़ने के उपाय बतलाए गये हैं। चारित्र मोह को बढ़ाने में सबसे प्रबल कारण काम विकार हैं और काम विकार का प्रबल निमित्त स्त्री है। इसलिये इन गाथाओं में प्रमुख रूप से स्त्री संग से एवं ऐसे निमित्तों से दूर रहने पर बल दिया गया है।
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