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मोह - उन्मूलन के उपाय
सावधानी रखे तो भी कभी न कभी उसके ब्रह्मचर्य के विनाश की संभावना रहती ही है। अतः ऐसे स्थान को छोड़ देना चाहिए ।
ण रूव-लावण्ण-विलास -हासं, ण जंपियं इंगियपेहियं वा । इत्थीण चित्तंसि णिवेसइत्ता, दडुं ववस्से समणे तवस्सी ॥१४॥ कठिन शब्दार्थ रूव-लावण्ण-विलास -हासं रूप, लावण्य, जंपियं - प्रियभाषण, इंगियपेहियं - इंगित अंगचेष्टा या कटाक्ष विक्षेपादि को अवलोकन को, णिवेसइत्ता
स्थापित करके, दट्टु - देखने का, ण ववस्से
ण चाइया एगंतहियं पसत्थो
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प्रमादस्थान
(अध्यवसाय) न करे ।
भावार्थ
श्रमण, तपस्वी स्त्रियों के रूप, लावण्य, विलास और हास्य को तथा जल्पित ( मधुर वचनों को) और इंगित (संकेत) एवं विविध प्रकार की शारीरिक चेष्टा तथा प्रेक्षित ( कटाक्षविक्षेपादि) को अपने चित्त में स्थापित करके उन्हें रागपूर्वक देखने का प्रयत्न न करे । अदंसणं वेव अपत्थणं च, अचिंतणं चेव अकित्तणं च ।
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इत्थी जणस्सारियझाणं-जुग्गगं, हियं सया बंभवए रयाणं ॥ १५ ॥ कठिन शब्दार्थ - अदंसणं अवलोकन न करना, अपत्थणं प्रार्थना न करना, अचिंतणं - चिंतन न करना, अकित्तणं कीर्तन न करना, इत्थीजणस्स - नारीजन का, आरियझाणं - जुग्गं - आर्यध्यान योग्य, बंभवए - ब्रह्मचर्य व्रत में, रयाणं - रत । भावार्थ: सदा ब्रह्मचर्य व्रत में अनुरक्त रहने वाले और आर्यध्यानयोग्य (धर्मध्यान, 'शुक्लध्यान) में तल्लीन साधुओं को स्त्रियों के अंगोपांगादि रागपूर्वक नहीं देखना, उनकी इच्छा नहीं करना, उनका चिन्तन नहीं करना और आसक्ति पूर्वक उनके रूपादि का गुणकीर्तन नहीं करना, यही उनके लिए हितकारी है ।
आर्यध्यान
कामं तु देवीहिं विभूसियाहिं, ण चाइया खोभइउं तिगुत्ता ।
तहा वि एगंत हियं ति णच्चा, विवित्तवासो मुणीणं पसत्थो ॥ १६ ॥
कंठिन शब्दार्थ - कामं तु - माना कि, देवीहिं- देवांगनाएं, विभूसियाहिं - विभूषित, समर्थ नहीं है, खोभइउं - विक्षुब्ध करने में, तिगुत्ता तीन गुप्तियों से गुप्त, एकान्त हितकर, विवित्तवासो
विविक्त वास, मुणीणं - मुनियों के लिए,
प्रशस्त ।
विलास और हास्य,
कटाक्ष पूर्वक
व्यवसाय
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