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प्रमादस्थान - दुःख मुक्ति व सुख प्राप्ति का उपाय
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तस्सेसमग्गो गुरु-विद्ध-सेवा, विवजणा बाल-जणस्स दूरा।
सज्झाय-एगंतणिसेवणा य, सुत्तत्थ-संचितणया धिई य॥३॥ — कठिन शब्दार्थ - तस्स - उसका, एस - यह, मग्गो - मार्ग, गुरु-विद्ध-सेवा - गुरुजनों और वृद्धों की सेवा, विवज्जणा - विवर्जन - त्याग करना, बालजणस्स - बालजन का, दूरा- दूर से ही, सज्झाय - स्वाध्याय, एगंतणिसेवणा - एकांत सेवन, सुत्तत्थसंचितणयासूत्र और उसके अर्थ पर सम्यक् चिंतन करना, धिई - धृति-धैर्य रखना।
भावार्थ - गुरु महाराज और वृद्ध मुनियों की सेवा करना, बाल-जनों अज्ञानियों के संग को दूर से ही विवर्जन त्याग देना, एकान्त में रह कर स्वाध्याय करना, सूत्र और अर्थ का चिन्तन करना तथा धैर्यपूर्वक संयम का पालन करना, यह उस मोक्ष का मार्ग (उपाय) है। ____ आहारमिच्छे मियमेसणिजं, सहायमिच्छे णिउणत्थ-बुद्धिं।
थिकेयमिच्छेज विवेगजोगं, समाहिकामे समाणे तवस्सी॥४॥ - कठिन शब्दार्थ - आहारं - आहार की, इच्छे - इच्छा करे, मियं - परिमित, एसणिज्जं - एषणीय-निर्दोष, सहायमिच्छे - सहायक की इच्छा करे, णिउणत्थ-बुद्धिं - निपुणार्थ बुद्धि वाले, णिकेय - निकेत - योग्य स्थान, विवेगजोगं - विविक्त योग - स्त्री-पशु-नपुंसक रहित, समाहिकामे - समाधि की इच्छा रखने वाला, समणे - श्रमण, तवस्सी - तपस्वी।
भावार्थ - समाधि को चाहने वाला, श्रमण, तपस्वी, परिमित और एषणीय-निर्दोष आहार आदि की इच्छा करे। जीवादि पदार्थों में निपुण बुद्धि वाले सहायक (शिष्यादि) की इच्छा करे और स्त्री-पशु-नपुंसक रहित योग्य स्थान की इच्छा करे।
ण वा लभेजा णिउणं सहायं, गुणाहियं वा गुणओ समं वा। एक्को वि पावाइं विवजयंतो, विहरेज कामेसु असजमाणो॥५॥
कठिन शब्दार्थ - ण वा लभेज्जा - यदि नहीं मिले, णिउणं - निपुण, सहावं - "संहायक, गुणाहियं - अधिक गुणों वाला, समं - समान, गुणओ - गुण वाला, एक्को विअकेला ही, पावाइं - पापों को, विवज्जयंतो - वर्जता हुआ, कामेसु - कामभोगों में, असज्जमाणो - आसक्त न होता हुआ।
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