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चरणविधि - तेरहवां-चौदहवां-पन्द्रहवां बोल
ग्यारहवां-बारहवां बोल
उवासग पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले ॥११॥
कठिन शब्दार्थ - उवासगपडिमा सु
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उपासक प्रतिमाओं में, भिक्खुणं पडिमा
भिक्षु प्रतिमाओं में ।
भावार्थ - उपासक प्रतिमा - श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं में और भिक्षुओं - साधुओं की बारह प्रतिमाओं में जो साधु सदा उपयोग रखता है वह मण्डल (संसार) में परिभ्रमण नहीं करता । विवेचन श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं के नाम १. सम्यक्त्व का पालन करना २. व्रत धारण करना ३. काल में - उभयकाल यथा समय प्रतिक्रमणादि क्रियाएं करना ४. तिथियों में पौषध करना ५. रात्रि में कायोत्सर्ग करना, स्नानादि का त्याग करना और धोती की लांग न बांधना ६. ब्रह्मचर्य धारण करना ७. सचित्ताहार का त्याग करना ८. स्वयं आरम्भ न करना ६. दूसरों से आरम्भ न कराना १०. उद्दिष्ट आहार का त्याग करना ११. साधु के
समान आचारण करना ।
बारह भिक्खु प्रतिमाओं के नाम एक मास से लेकर सात मास तक एक-एक मास की सात प्रतिमाएं होती है। आठवीं, नौवीं और दसवीं ये तीन प्रतिमाएं सात-सात अहोरात्र की हैं। ग्यारहवीं प्रतिमा एक अहोरात्रि की है और बारहवीं प्रतिमा केवल एक रात्रि की होती है। तेरहवां-चौदहवां-पन्द्रहवां बोल
किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएसु य ।
जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले ॥ १२ ॥
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कठिन शब्दार्थ - किरियासु - क्रियाओं में, भूयगामेसु - भूतग्रामों (जीवसमूहों) में, परमाहम्मिएसु - परमाधार्मिक असुरों (देवों) में ।
भावार्थ - तेरह क्रियाओं में, चौदह भूतग्रामों में और पन्द्रह परमाधार्मिकों में जो साधु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में परिभ्रमण नहीं करता है ।
विवेचन समवायांग सूत्र समवाय १३, सूत्रकृतांग सूत्र २/२ में तेरह क्रियाओं का, समवायांग सूत्र समवाय १४ में चौदह भूतग्रामों का एवं समवायांग सूत्र समवाय १५ में पन्द्रह परमाधार्मिक देवों का विस्तृत वर्णन किया गया है। जिज्ञासुओं को वहाँ से देखना चाहिए ।
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