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________________ २५६ उत्तराध्ययन सूत्र - इकत्तीसवाँ अध्ययन सोलहवां- सतरहवां बोल गाहासोलसएहिं, तहा असंजमम्मि य । जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले ॥ १३ ॥ कठिन शब्दार्थ - गाहासोलसएहिं - गाथा षोडशकों में, असंजमम्मि - असंयम में। भावार्थ - जो साधु सूयगडांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययनों में सदा उपयोग रखता (ज्ञान रखता है और सतरह प्रकार के असंयम को छोड़ कर पृथ्वीकायादि की रक्षा रूप सतरह प्रकार के संयम का पालन करता है, वह मण्डल (संसार) में परिभ्रमण नहीं करता है। विवेचन - समवायांग सूत्र समवाय १६ गाथाओं में निबद्ध गाथा नामक अध्ययन सहित सूत्रकृतांग सूत्र प्रथम श्रुतस्कंध के १६ अध्ययनों का नाम निर्देश किया गया है। समवायांग सूत्र समवाय १७ में सतरह प्रकार के असंयम का वर्णन किया गया है। अठारहवां - उन्नीसवां - बीसवां बोल भम्मि णायज्झयणे, ठाणेसु असमाहिए। जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले ॥ १४॥ कठिन शब्दार्थ - बंभम्मि - ब्रह्मचर्य में, णायज्झयणेसु - ज्ञाताधर्म कथा के अध्ययनों में, असमाहिए - असमाधि के, ठाणेसु - स्थानों में । भावार्थ - जो साधु अठारह प्रकार के ब्रह्मचर्य का सदा पालन करता है तथा ज्ञातासूत्र के उन्नीस अध्ययनों का अध्ययन करता है और बीस असमाधि के स्थानों का त्याग कर समाधि स्थानों में प्रवृत्ति करता है, वह मण्डल संसार में परिभ्रमण नहीं करता है। विवेचन - औदारिक शरीर संबंधी और वैक्रिय शरीर संबंधी मैथुन का तीन करण (कृत, कारित और अनुमोदन रूप) से तथा तीन योग (मन, वचन, काया) से त्याग करना अठारह प्रकार का ब्रह्मचर्य है। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के अध्ययन १ से १६ तक में कथित उदाहरणों के अनुसार संयम साधना में प्रवृत्त होना और असंयम से निवृत्त होना चारित्रविधि है । दशाश्रुतस्कंध दशा १ एवं समवायांग सूत्र समवाय २० में बीस असमाधि स्थान का वर्णन किया गया है। जिस कार्य के करने से चित्त में अशांति, अस्वस्थता एवं अप्रशस्त भावना पैदा हो, ज्ञानादि रत्नत्रय से आत्मा भ्रष्ट हो, उसे असमाधि स्थान कहते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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