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उत्तराध्ययन सूत्र - इकत्तीसवाँ अध्ययन
स्थानों में, सत्त
कठिन शब्दार्थ - पिंडोग्गह पडिमासु - पिण्ड - अवग्रह प्रतिमाओं में, भयट्ठाणेसु - भय सात, जयइ यतना (उपयोग) रखता है।
भावार्थ - आहार ग्रहण विषयक सात पडिमाओं में और सात भयस्थानों में जो साधु नित्य उपयोग रखता है, वह मण्डल (संसार) में परिभ्रमण नहीं करता है।
विवेचन सात पिण्डोवग्रह प्रतिमाओं के नाम - संसृष्टा, असंसृष्टा, उद्धृता, अल्पलेपिका, उद्गृहीता, प्रगृहीता और उज्झित धर्मा । ये सात पिण्डैषणा कहलाती हैं। इनका अर्थ उत्तराध्ययन सूत्र के ३० वें अध्ययन की २५ वीं गाथा के विवेचन में दे दिया गया है।
सात भयों के नाम - इहलोक भय, परलोक भय, आदान भय, अकम्हा (अकस्मात् ) भय, आजीविका भय, अपयश भय और मरण भय ।
आठवां- नौवा - दसवां बोल
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मसु बंभगुत्तीसु, भिक्खुधम्मम्मि दसविहे ।
जे भिक्खू जयइ णिच्च, से ण अच्छड़ मंडले ॥१०॥
कठिन शब्दार्थ- मएसु मद स्थानों में, बंभगुत्तीसु - ब्रह्मचर्य - गुप्तियों में, भिक्खुधम्मम्मि - श्रमण धर्म में, दसविहे
दस प्रकार के ।
भावार्थ - आठ मदस्थानों के त्याग में नौ ब्रह्मचर्य - गुप्तियों का पालन करने में तथा दस प्रकार के भिक्षु धर्म- यतिधर्म का पालन करने में जो साधु नित्य उपयोग रखता है, वह मण्डलसंसार में परिभ्रमण नहीं करता है।
विवेचन मद आठ-जातिमद, कुलमद, रूपमद, बलमद, लाभमद, और तपमद ।
ऐश्वर्यमद
श्रुतमद,
ब्रह्मचर्य गुप्तियाँ नौ - १. स्त्री- पशु - नपुंसक रहित स्थान में निवास करना २. स्त्रियों की कथा न करना ३. स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठना अथवा जिस आसन एवं स्थान पर स्त्री बैठी हुई थी, उसके उठ जाने पर भी एक मुहूर्त्त तक उस आसन एवं स्थान पर न बैठना ४. स्त्रियों के मनोहर अंगों को विकार पूर्वक न देखना ५. भित्ति भींत (दीवार) आदि के अन्तर से स्त्रियों के शब्दों को न सुनना ६. पहले भोगे हुए भोगों को याद न करना ७. गरिष्ठ आहार न करना ८. परिमाण से अधिक आहार न करना और ६. अपने शरीर को विभूषित न करना । यतिधर्म दस १. क्षमा २. मुक्ति (निर्लोभता ) ३. आर्जव ( सरलता ) ४. मार्दव (मृदुता ) ५. लाघव (लघुता ) ६. सत्य ७. संयम ८. तप ६. त्याग और १०. ब्रह्मचर्यवास ।
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