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चरणविधि - सातवां बोल
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इन्द्रिय विषय - श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय, इन पांच इन्द्रियों के क्रमशः शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श, ये पांच विषय हैं। ___क्रियाएं - कर्मबंध करने वाली चेष्टा का नाम क्रिया है। मुख्य क्रियाएं पांच हैं - १. कायिकी - काया द्वारा निष्पन्न होने वाली २. आधिकरणिकी - घातक शस्त्रादि अधिकरणों के प्रयोग से लगने वाली क्रिया ३. प्राद्वेषिकी - जीव या अजीव पर द्वेष भाव से लगने वाली क्रिया ४. पारितापनिकी - किसी जीव को परिताप देने से होने वाली ५. प्राणातिपातिकी - स्व-पर के प्राणातिपात से होने वाली क्रिया।
छठा बोल लेसासु छसु काएसु, छक्के आहार-कारणे। जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले॥८॥
कठिन शब्दार्थ - लेसासु - लेश्याओं में, छसु काएसु - छह कायों में, छक्के आहार-कारणे - आहार ग्रहण करने के छह कारणों में। - भावार्थ - छह लेश्याओं में, छह काय में, छह आहार करने के कारण और आहार त्यागने के छह कारण, इन में जो साधु नित्य उपयोग रखता है, वह संसार में परिभ्रमण नहीं करता है। .. विवेचन - लेश्या - जीव का अध्यवसाय या परिणाम विशेष लेश्या है। अथवा आत्मा के जिन शुभाशुभ परिणामों द्वारा शुभाशुभ कार्यों का संश्लेष होता है, उसे लेश्या कहते हैं। लेश्याएं छह हैं - १. कृष्ण लेश्या २. नील लेश्या ३. कापोत लेश्या ४. तेजो लेश्या ५. पद्म लेश्या और ६. शुक्ल लेश्या।
छह काय - जीवनिकाय (संसारी जीव-समूह) छह हैं - १. पृथ्वीकाय २. अप्काय ३. तेजस्काय ४. वायुकाय ५. वनस्पतिकाय और ६. त्रसकाय। उत्तराध्ययन सूत्र के २६वें अध्ययन में आहार करने के छह कारण बताये गये हैं।
. सातवां बोल पिंडोग्गहपडिमासु, भयट्ठाणेसु सत्तसु। जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले॥६॥
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