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कठिन शब्दार्थ - विगहा - विकथा, कसाय
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उत्तराध्ययन सूत्र इकत्तीसवाँ अध्ययन
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ध्यान, दुयं दो, वज्जइ - वर्जन करता है।
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भावार्थ
चार विकथा, चार कषाय, चार संज्ञा तथा दो ध्यान (आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान ) इन सब को जो साधु नित्य छोड़ देता है, वह मण्डल (संसार) में परिभ्रमण नहीं करता है। विवेचन - विकथा संयमी जीवन के विरुद्ध या विनाशकारी निरर्थक कथा विकथा है। विकथा चार है - १. स्त्रीकथा २. भक्त कथा ३. देश कथा और ४. राज कथा ।
प्राप्ति हो, वृद्धि हो उसे कषाय
कषाय - कष अर्थात् संसार, उसकी जिससे आय कहते हैं। कषाय चार हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ ।
संज्ञा - विकृत अभिलाषा को संज्ञा कहते हैं। संज्ञाएं चार हैं - १. आहार संज्ञा २. भय संज्ञा ३. मैथुन संज्ञा और ४. परिग्रह संज्ञा ।
ध्यान - वस्तु पर चित्त को एकाग्र करना ध्यान है। ध्यान के चार प्रकार हैं - १. आर्त्तध्यान २. रौद्रध्यान ३. धर्मध्यान और ४. शुक्लध्यान । आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान दो अशुभ ध्यान
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पांचवां बोल
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वसु इंदियत्थेसु, समिइसु किरियासु य ।
जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले ॥७ ॥
कठिन शब्दार्थ - वसु - व्रतों में, इंदियत्थेसु इन्द्रियों के विषयों में, समिइसु -
समितियों में, किरियासु क्रियाओं में, जयइ यत्न (यतना) करता है।
भावार्थ - पाँच महाव्रत, पाँच समितियों के पालन में तथा पाँच इन्द्रियों के विषय और पाँच क्रियाओं के परित्याग में जो साधु सदा यत्न करता है, वह मण्डल (संसार) में परिभ्रमण नहीं करता है।
कषाय, सण्णाणं - संज्ञा, झाणाणं -
विवेचन महाव्रत जो अपने आप में महान् हों तथा जो महान् आत्माओं द्वारा आचरित हों तथा महान् अर्थ - मोक्ष पुरुषार्थ को सिद्ध करते हैं, वे महाव्रत कहलाते हैं। साधु के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, ये पांच महाव्रत हैं।
समिति - विवेकपूर्वक सम्यक् प्रवृत्ति करना समिति है । ये पांच हैं।
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१. ईर्या समिति २. भाषा समिति ३. एषणा समिति ४ आदानभाण्डनिक्षेपणा समिति और ५. उच्चारप्रस्रवण खेल जल्ल परिस्थापना समिति ।
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