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सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - वचन गुप्तता २०६ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
विवेचन - योगसत्य अर्थात् मन, वचन, काया के योगों - प्रयत्नों की सत्यता से साधक योगों की विशुद्धि कर लेता है।
५. मनःगुप्तता मण-गुत्तयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मनःगुप्तता - मनोगुप्ति (मन को वश में रखने) से जीव को क्या लाभ होता है?
मण-गुत्तयाए णं जीवे एगग्गं जणयइ, एगग्गचित्तेणं जीवे मणगुत्ते संजमाराहए भवइ॥५३॥
कठिन शब्दार्थ - मणगुत्तयाए - मनःगुप्तता - मनोगुप्ति से, एगग्गं. - एकाग्रता, संजमाराहए - संयम का आराधक।
भावार्थ - उत्तर - मनःगुप्तता - मनोगुप्ति से जीव का चित्त एकाग्र होता है और एकाग्र चित्त वाला जीव मन को वश में कर के संयम का आराधक होता है।
विवेचन - समस्त विकल्प जाल से मुक्त होना और समभाव में प्रतिष्ठित होकर मन का आत्मा में रमण करना अथवा अशुभ अध्यवसाय में जाते हुए मन को रोकना मनोगुप्ति कहलाती है।
१४. वचनगुप्तता वय-गुत्तयाए. णं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वाग् गुप्तता - वचनगुप्ति से जीव को क्या लाभ होता है?
वय-गुत्तयाए णं णिब्वियारत्तं जणयइ, णिव्वियारेणं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोग-साहणजुत्ते यावि भवइ॥५४॥ . ___कठिन शब्दार्थ - वयगुत्तयाए - वचन गुप्ति से, णिब्वियारत्तं - निर्विकारता को, अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते - अध्यात्मयोग के साधनभूत ध्यान से युक्त। . .
भावार्थ - उत्तर - वाग्-गुप्तता - वचनगुप्ति से निर्विकार भाव की प्राप्ति होती है। निर्विकारी जीव वचन-गुप्त होता है और अध्यात्म - योग (धर्मध्यान) आदि के साधनों से युक्त होता है।
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