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२०८ . .. उत्तराध्ययन सत्र - उनतीसवाँ अध्ययन COOOctionROOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOGooooooo
भावार्थ - उत्तर - भाव-सत्य से भाव-विशुद्धि को प्राप्त करता है। भाव-विशुद्धि में वर्तमान जीव अर्हन्त देव द्वारा प्ररूपित धर्म की आराधना करने के लिए उद्यत होता है। अर्हन्त देव द्वारा प्ररूपित धर्म की आराधना के लिए उद्यत होकर परलोक धर्म का आराधक होता है। - विवेचन - भावसत्य - अंतरात्मा की सत्यता से जीवात्मा के अध्यवसाय शुद्ध होते हैं जिससे वह अर्हन्त प्ररूपित धर्म की आराधना में कटिबद्ध रहता है। इस धर्माराधना के फलस्वरूप उसे परलोक में भी सद्धर्म की प्राप्ति होती है अर्थात् वह जन्मान्तर में भी धर्माराधक होता है।
.. ५१. करण सत्य करण-सच्चेणं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! करण-सत्य (सत्यप्रवृत्ति) से जीव को क्या लाभ होता है?
करण-सच्चेणं करणसत्तिं जणयइ, करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहावाई तहाकारी यावि भवइ॥५१॥ .
कठिन शब्दार्थ - करणसच्चेणं - करण सत्य से, करणसत्तिं - करण शक्ति को, वट्टमाणे - प्रवर्तमान, जहावाई तहाकारी - यथावादी तथाकारी - जैसा,कहता है वैसा करने वाला। . . .
'भावार्थ - उत्तर - करण-सत्य से सत्य क्रिया करने की शक्ति उत्पन्न होती है। करणसत्य में प्रवृत्ति करने वाला जीव जैसा बोलता है वैसा ही करता है।
विवेचन - करण सत्य अर्थात् कार्य की सत्यता से जीव में कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है और भविष्य में उसके वक्तव्य और कार्य अर्थात् उपदेश और आचरण दोनों समान हो जाते हैं।
५. योग-सत्य जोग-सच्चेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मन, वचन, काया रूप योग-सत्य से जीव को क्या लाभ होता है?
जोग-सच्चेणं जोगे विसोहेइ॥५२॥ भावार्थ - उत्तर - योग-सत्य से योगों की विशुद्धि होती है।
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