________________
सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - भावसत्य २०७ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
8. मृदुता - मद्दवयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मृदुता (स्वभाव की कोमलता) से जीव को क्या लाभ होता है?
मद्दवयाए णं अणुस्सियत्तं जणयइ, अणुस्सियत्ते णं जीवे मिउमद्दवसंपण्णे अट्ठ मयट्ठाणाई णिट्ठवेइ॥४६॥ ... कठिन शब्दार्थ - मद्दवयाए - मृदुता से, अणुस्सियत्तं - अनुद्धतभाव - निरभिमानता को, मिउमद्दवसंपण्णे - मृदु और मार्दव भाव से सम्पन्न होकर, अट्ठमयट्ठाणाई - आठ मद . स्थानों को, णिट्ठवेइ - विनष्ट कर देता है। . भावार्थ - उत्तर - मृदुता (कोमलता) से जीव अनुच्छ्रितत्व, अहंकार-रहित हो जाता है अनुच्छ्रितत्व - अहंकार-रहित बना हुआ जीव मृदु-मार्दव-सम्पन्न (नम्र और कोमल स्वभाव वाला) हो कर आठ मद स्थानों का परित्याग कर देता है अर्थात् ऐसा विनीत और सरल जीव जाति, कुल, बल, रूप, तप, ज्ञान, लाभ और ऐश्वर्य, इन आठ का मद नहीं करता है।
विवेचन - जो जीव द्रव्य और भाव से मृदु कोमल स्वभाव वाला होता है उसके जीवन में - १. अनुद्धतता - अभिमान रहितता २. कोमलता और नम्रता तथा ३. आठ मद स्थानों का अभाव हो जाता है।
___40. भावसत्य भावसच्चेणं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! भाव-सत्य से जीव को क्या लाभ होता है?
भावसच्चेणं भावविसोहिं जणयइ, भावविसोहीए वट्टमाणे जीवे अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्टेइ, अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्टित्ता परलोगधम्मस्स आराहए भवइ॥५०॥ ..
कठिन शब्दार्थ - भावसच्चेणं - भाव सत्य से, भावविसोहिं - भाव विशुद्धि को, वट्टमाणे- वर्तमान, अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स - अर्हन्त देव द्वारा प्ररूपित धर्म की, आराहणयाएआराधना करने के लिए, अब्भुढेइ. - उद्यत होता है, परलोगधम्मस्स - परलोक धर्म का, आराहए - आराधक।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org