________________
१६८
उत्तराध्ययन सूत्र - उनतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 युक्त अनेषणीय-अकल्पनीय आहार का त्याग करना भी इसका अर्थ है। सबसे बड़ी दो उपलब्धियाँ आहार प्रत्याख्यान से होती है - १. जीने की आकांक्षा समाप्त हो जाना और २. आहार के प्राप्त न होने से उत्पन्न होने वाला मानसिक संक्लेश न होना।
३६. कषाय प्रत्याख्यान कसाय-पच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कषाय का प्रत्याख्यान - त्याग करने से जीव को क्या लाभ होता है?
कसाय-पच्चक्खाणेणं वीयरागभावं जणयइ, वीयरागभावपडिवण्णेवि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - कसायपच्चक्खाणेणं - कषाय का प्रत्याख्यान करने से, वीयरागभावंवीतराग भाव, समसुहदुक्खे - सुख दुःख में समभाव रखने वाला।
भावार्थ - क्रोधादि कषाय का प्रत्याख्यान - त्याग करने से वीतराग भाव प्राप्त होता है और वीतराग भाव को प्राप्त हुआ जीव सुख-दुःख में समभाव रखने वाला होता है।
विवेचन - क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चारों की कषाय संज्ञा है अर्थात् संसार का आय-लाभ या आगमन जिससे हो, वह कषाय है। कषायों के त्याग से जीव राग-द्वेष से रहितवीतराग हो जाता है।
२७ योग-प्रत्याख्यान जोग-पच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मन-वचन-काया रूप योगों की प्रवृत्ति का निरोध करने से जीव को क्या लाभ होता है?
. जोग-पच्चक्खाणेणं अजोगित्तं जणयइ, अजोगी णं जीवे णवं कम्मं ण बंधइ, पुव्वबद्धं च णिज्जरेइ॥३७॥
कठिन शब्दार्थ - जोगपच्चक्खाणेणं - योगों की प्रवृत्ति का प्रत्याख्यान-निरोध करने से, अजोगित्तं - अयोगित्व - अयोगी भाव को, पुवबद्धं - पहले के बंधे हुए कर्म की।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org