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सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - एकाग्रमन सन्निवेश १८६ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अध्ययन-मनन से अज्ञान का नाश होता है। वस्तुतः श्रुतजन्य विशिष्ट बोध मिथ्याज्ञान नाशक होता ही है और अज्ञान के नाश होने से रागद्वेषजन्य आंतरिक क्लेश भी शांत हो जाता है।
श्रुत आराधना का फल बताते हुए एक आचार्य ने कहा है - ज्यों-ज्यों श्रुत (शास्त्र) में गहरा उतरता जाता है, त्यों-त्यों अतिशय प्रशम रस में सराबोर होकर अपूर्व आनंद (आह्लाद) प्राप्त करता है। संवेगभाव नई-नई श्रद्धा से युक्त होता जाता है।
२५ एकाग्रमन सनिवेश एगग्गमण-सण्णिवेसणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एकाग्रमनसन्निवेशनता - मन की एकाग्रता से जीव को क्या लाभ होता है?
एगग्ग-मण-सण्णिवेसणयाए णं चित्तणिरोहं करेइ॥२५॥
कठिन शब्दार्थ - एगग्गमणसण्णिवेसणयाए - मन की एकाग्रता से, चित्तणिरोहं - चित्त का निरोध।
भावार्थ - उत्तर - मन की एकाग्रता से जीव चित्तवृत्ति का निरोध करता है। ... विवेचन - मन की एकाग्रता का फल चित्त निरोध बताया गया है। मन को एकाग्र करने के तीन उपाय हैं - १. एक ही पुद्गल में दृष्टि गड़ा देना २. मन को एक ही शुभ अवलम्बन में स्थिर करना ३. मन और वायु के निरोध से मन को एकाग्र करके एक मात्र ध्येय में लीन हो जाना। - चित्त में विकल्पों का न उठना ही चित्तनिरोध है। चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है।
यद्यपि सूत्र में केवल ‘एकाग्र' पद ही दिया है, तथापि प्रस्ताव से यहाँ पर शुभ आलंबन का ग्रहण किया जाता है। यदि शुभ आलंबन का ग्रहण न किया जावे तो आर्तध्यान और रौद्रध्यान में भी मन की स्थिति हो सकती है। इसलिए आर्तध्यान और रौद्र ध्यान को छोड़कर केवल धर्मध्यान और शुक्ल ध्यान में ही किसी शुभ आलंबन के द्वारा मन की एकाग्रता शास्त्रकार को सम्मत है। उसी से चित्तवृत्ति का निरोध होना अभीष्ट है। . यदि दूसरे शब्दों में कहें तो प्रस्तुत बोल में द्रव्य प्राणायाम और भाव प्राणायाम का स्पष्ट वर्णन दिखाई देता है, क्योंकि मन और वायु का एक स्थान है और वायु के निरोध से मन की एकाग्रता हो जाती है। उसका फल चित्त का सर्वथा निरोध है। इसीलिए पातंजल योग दर्शन में 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोध' (यो० १-१-२) कहा है।
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