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________________ उनतीसवाँ अध्ययन ५. ४. अनुप्रेक्षा - सीखे हुए सूत्र और उसके अर्थ का चिंतन मनन करना अनुप्रेक्षा है । धर्मकथा - उपरोक्त चारों प्रकार से शास्त्र का अभ्यास कर लेने पर जगत् जीवों को शास्त्रों का व्याख्यान सुनाना, धर्मोपदेश देना धर्मकथा है। धर्मोपदेश देना सरल काम नहीं हैं। उसमें सावद्य वचन का प्रयोग न हो जाय इसका निरंतर ध्यान रखना पड़ता है। जैसा कि कहा है सावज्ज अणवज्ज वयणाणं, जोण जाणाइ विसेसं । तस्सवोत्तुं विण खमं, किमंग पुण देसणां दाउं ॥ सावध निरवद्य वचन का, है न जिसको ज्ञान । बातचीत के योग्य नहीं, कैसे दे व्याख्यान ?।। इसीलिए धर्मकथा के लक्षण में ऊपर कहा गया है कि - शास्त्रों की वाचना गुरुदेवों से लेकर फिर पृच्छना, परिवर्तना और अनुप्रेक्षा कर लेने के बाद ही धर्मोपदेश देना चाहिए। प्रवचन की प्रभावना करने वाले आठ माने गये हैं । १. धर्मकथा कहने वाला कवि । ८. यथा २. प्रावचनी ३. वादी ४. नैमित्तिक ५. तपस्वी ६. विद्वान ७. सिद्ध इसलिए धर्मकथा कहने से प्रवचन की प्रभावना होती है और प्रवचन प्रभावक जीव आगामी काल में शुभ कर्म का ही बन्ध करता है। परन्तु यहाँ पर इतना स्मरण रहे कि धर्मकथा के कहने का अधिकार उसी जीव को है जो उसमें योग्यता रखता है । यदि योग्यता के बिना धर्मकथा करेगा तो कदाचित् उत्सूत्र प्ररूपणा से भविष्य काल में अशुभ कर्मों के बंध की भी पूरी संभावना है। १८८ उत्तराध्ययन सूत्र २४. श्रुत की आराधना सुयस्स आराहणयाए णं भंते! जीवे किं जणय ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! श्रुत की आराधना से जीव को क्या लाभ होता है? सुयस आराहणयाए णं अण्णाणं खवेइ, ण य संकिलिस्सइ ॥ २४ ॥ कठिन शब्दार्थ सुयस्स आराहणयाए णं Jain Education International श्रुत की आराधना करने से जीव, अण्णाणं - अज्ञान का, ण संकिलिस्सइ - संक्लेश को प्राप्त नहीं होता । श्रुत की आराधना करने से जीव अज्ञान का क्षय नाश करता है और संक्लेश को प्राप्त नहीं होता । भावार्थ - उत्तर विवेचन - श्रुत अर्थात् शास्त्र या सिद्धान्त की आराधना सम्यक् आसेवना - भलीभांति - - - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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