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सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - धर्मकथा . १८७ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 पाठ में 'असायावेयणिजं च णं कम्मं णो भुजो-भुजो उवचिणाई' शब्द दिये हैं। जिसका अर्थ है - असातावेदनीय कर्म को बार-बार नहीं बांधता। लक्षणा से यह अर्थ भी निकलता है कि - कभी प्रमत्त गुणस्थानवर्ती होने से असाता वेदनीय कर्म का बंध भी कर लेता है। यह कर्मों की विचित्रता है। कहीं तो इस प्रकार का पाठान्तर भी है - "सायावेयणिजं च णं कम्मं भुजो भुजो उवचिणाई' अर्थात् साता वेदनीय कर्म को बारम्बार बांधता है। साथ ही दूसरी शुभ प्रकृतियों को भी बांधता है।
२६. धर्मकथा धम्मकहाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! धर्मकथा कहने से जीव को क्या लाभ होता है?
धम्मकहाए णं. णिज्जरं जणयइ, धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ, पवयणपभावेणं जीवे आगमिसस्स भद्दत्ताए कम्मं णिबंधइ॥२३॥
कठिन शब्दार्थ - धम्मकहाए - धर्मकथा से, पवयणं - प्रवचन की, पभावेइ - प्रभावना करता है, आगमिसस्स - आगामीकाल में, भद्दत्ताए कम्मं - भद्रता से शुभकर्मों का, णिबंधइ - बंध करता है।
भावार्थ - उत्तर - धर्म कथा कहने से (धर्मोपदेश देने से) कर्मों की निर्जरा होती है। धर्मकथा कहने से प्रवचन की प्रभावना होती है। प्रवचन की प्रभावना करने से जीव आगामीभविष्य काल में भद्रता से शुभ कर्मों का ही बन्ध करता है। . विवेचन - यहाँ स्वाध्याय के पांच भेद किये हैं। ठाणाङ्ग सूत्र के पांचवें ठाणे में भी पांच भेद किये हैं। उनका टीकानुसार अर्थ इस प्रकार है - अस्वाध्याय काल को छोड़ कर शोभन रीति से मर्यादा पूर्वक शास्त्र का अध्ययन करना सु+आ+अध्याय स्वाध्याय कहलाता है। इसके पांच भेद कहे गये हैं।
१. याचना - जिज्ञासु शिष्य आदि को सूत्र और अर्थ पढ़ाना वाचना है। २. पृच्छना - पढ़े हुए सूत्र अर्थ में शंका होने पर प्रश्न करना पृच्छना है।
३. परिवर्तना (परावर्तना) - पढ़ा हुआ ज्ञान भूल न जाये इसलिए उन्हें बार-बार फेरना परिवर्तना है।
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