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उत्तराध्ययन सूत्र - उनतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
अणुप्पेहाए णं आउय-वज्जाओ सत्त-कम्मपयडीओ धणियबंधण-बद्धाओ सिढिलबंधण-बद्धाओ पकरेइ, दीहकालट्ठिइयाओ हस्सकालट्टिइयाओ पकरेइ, तिव्वाणुभावाओ मंदाणुभावाओ पकरेइ, बहुप्पएसगाओ अप्पपएसगाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ सिय णो बंधइ, असायावेयणिज्जं च णं कम्म णो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ, अणाइयं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसार-कंतारं खिप्पामेव वीइवयइ॥२२॥ ___ कठिन शब्दार्थ - अणुप्पेहाए - अनुप्रेक्षा से, आउयवज्जाओ - आयुष्य कर्म को छोड़कर, सत्तकम्मपयडीओ - सात कर्मों की प्रवृत्तियों को, धणियबंधणबद्धाओ - गाढ़ बंधनों से बद्ध, सिढिलबंधणबद्धाओ - शिथिल बंधनों से बद्ध, पकरेइ - कर लेता है, दीहकालट्ठिइयाओ - दीर्घकाल की स्थिति वाली, हस्सकालट्ठिइयाओ - अल्पस्थिति वाली, तिव्वाणुभावाओ- तीव्र अनुभाव वाली, मंदाणुभावाओ- मन्द अनुभाव वाली, बहुप्पएसगाओबहुप्रदेश वाली, अप्पपएसगाओ - अल्प प्रदेश वाली, असायावेयणिज्जं - असाता वेदनीय को, भुज्जो भुज्जो - बार बार, णो उवचिणाइ - उपचय नहीं करता, अणाइयं - अनादि, अणवयग्गं - अनवदा-अनन्त, दीहमद्धं - दीर्घ मार्ग वाले, चाउरंत-संसार-कंतारं - चार गति रूप संसार कान्तार-अटवी को, खिप्पामेव - शीघ्र ही, वीइवयइ - व्यतिक्रम (पार) कर लेता है।
___ भावार्थ - उत्तर - अनुप्रेक्षा से आयु-कर्म के सिवाय सात कर्मों की प्रकृतियों को यदि वे गाढ़ बन्धन से बन्धी हुई हों तो उन्हें शिथिल बन्ध वाली कर देता है। दीर्घ काल स्थिति-लम्बी स्थिति वाली हों तो उन्हें अल्प स्थिति वाली करता है। तीव्र अनुभाव-रस वाली हों तो मंद रस वाली कर देता है। बहुप्रदेशी हों तो उन्हें अल्प प्रदेश वाली कर देता है और उसके आयु कर्म का कदाचित् बन्ध होता और कदाचित् बन्ध नहीं भी होता। ऐसे जीव को असाता-वेदनीय कर्म का बार बार बन्ध नहीं होता है। ऐसे जीव इस अनादि अनवदग्र-अनंत तथा दीर्घ मार्ग वाले चतुर्गति रूप संसार कान्तार-अटवी को शीघ्र ही पार कर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।
विवेचन - अनुप्रेक्षा से यहाँ पर सभी प्रकार की अनुप्रेक्षाओं का ग्रहण अभिमत है। यथाअनित्य आदि द्वादश अनुप्रेक्षा, धर्मध्यान संबंधी ४ और शुक्लध्यान की ४ अनुप्रेक्षा इत्यादि।
आयुष्यकर्म जीवन में एक बार ही बंधता है और वह निकाचित रूप से बंधता है। मूल
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