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क्रं.
विषय
१६७. मनोभावों के प्रति राग-द्वेष से -
नेप
१६८. रागी के लिए दुःख के हेतु
१६६. वीतरागता में बाधक प्रयत्नसे सावधान
१७०. विरक्तात्मा का पुरुषार्थ -
और संकल्प
१७१. वीतरागता का फल १७२. उपसंहार
१७३. आठ कर्म
१७४. ज्ञानावरणीय की उत्तर प्रकृतियां १७५. दर्शनावरणीय की उत्तर प्रकृतियां १७६. वेदनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियां १७७. मोहनीय की उत्तर प्रकृतियां १७८. आयुकर्म की उत्तर प्रकृतियां १७६. नामकर्म की उत्तर प्रकृतियां
१८०. गोत्रकर्म की उत्तर प्रकृतियां १८१. अंतराय कर्म की उत्तर प्रकृतियां
कर्मप्रकृति नामक तेतीसवां
१८२. कर्मों के प्रदेशाग्र
१८३. कर्मों की स्थितियाँ
१८४. कर्मों के अनुभाग १८५. उपसंहार
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पृष्ठ क्रं.
२६०
२६४
२६५
२६६
२६६
२६८
अध्ययन २६६-३१०
विषय
लेश्या नामक चौतीसवां
१८६. लेश्या - स्वरूप
१८७. विषयानुक्रम
अध्ययन ३१२ - ३३१
३१२
३१३
३१३
३१४
३.१६
३१७
३१८
३१९
३२०
३२३
१. नाम द्वार - लेश्याओं के नाम
२. वर्ण द्वार - लेश्याओं के वर्ण
३. रस द्वार
४. गंधद्वार
५. स्पर्शद्वार
६. परिणाम- द्वार
७. लक्षणद्वार
पृष्ठ
८. स्थानद्वार ९. स्थितिद्वार
३२३
१८८. चारों गतियों में लेश्याओं की स्थिति ३२५
१०. गतिद्वार
११. आयुष्यद्वार १८६. उपसंहार
२६६
३००
३००
३०१
३०१ | अनगार मार्गगति नामक पैंतीसवां
३०३
३०४
३०४
३०५
३०५
१९३. निवास स्थान विवेक
३०७ | १६४. गृहकर्म समारंभ - निषेध
३१०
१६५. आहार पचन - पाचन निषेध ३११ १९६. क्रय विक्रय वृत्ति का निषेध
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३२६
३३०
३३१
अध्ययन ३३२-३४२
१६०. अनगार मार्ग के आचरण का फल ३३२
१६१. सर्व संग परित्याग
३३३
१९२. पापास्रवों का त्याग
३३४
३३४
३३६
३३७
३३८
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