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________________ ३६२ 21] 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 क्रं. विषय पृष्ठ | क्रं. विषय पृष्ठ १६७. भिक्षावृत्ति का विधान ३३६ / २२०. पंचेन्द्रिय त्रस जीवों का स्वरूप ३८६ १९८. स्वादवृत्ति-निषेध ३४० | २२१. नैरयिकों का वर्णन ३८६ १६६. मान-सम्मान निषेध ३४० | २२२. तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का स्वरूप २००. अनगार के लिए मुख्य चार मार्ग ३४१ | २२३. जलचर वर्णन ३६० २०१. अनगारमार्ग आचरण - २२४. स्थलचर - वर्णन का फल - उपसंहार . ३४१ | २२५. नभचर जीवों का स्वरूप ... ३६४ जीवाजीव विभक्ति नामक २२६. मनुष्यों का स्वरूप ३६६ ३६४ छत्तीसवां अध्ययन.३४३-४२४ २२७. देवों का वर्णन १. भवनपति देव ४०० २०२. विषय निर्देश और प्रयोजन । ३४३ २. वाणव्यंतर देव ४०१ २०३. लोकालोक का स्वरूप ३४३ ३. ज्योतिषी देव ४०२ २०४. अजीव का स्वरूप ३४४ ४. वैमानिक देव ४०३ २०५. अरूपी अजीव निरूपण ३४५ | २२८. कल्पोपपन्न के भेद ४०५ २०६. रूपी अजीव का निरूपण ३४७ २२६. कल्पातीत के भेद ४०५ २०७. जीव का स्वरूप २३०. उपसंहार ४१४ २०८. सिद्ध जीवों का स्वरूप २३१. श्रमण वर्ग का कर्तव्य ४१४ २०६. संसारी जीवों का स्वरूप ३६४ | २३२. अंतिम साधना - संलेखना ४१४ २१०. पृथ्वीकाय का निरूपण ३६६ | २३३. समाधिमरण में बाधक तत्त्व ४१७ २११. अप्काय का स्वरूप ३७० २३४. बोधि दुर्लभता-सुलभता ४१८ २१२. वनस्पतिकाय का स्वरूप ३७१ / २३५. परित्त-संसारी ४१६ २१३. तीन प्रकार के त्रस ३७५ | २३६. आलोचना श्रवण के योग्य . . ४२० - २१४. तेजस्काय का स्वरूप ३७६ / २३७. कान्दी भावना २१५. वायुकाय का स्वरूप ३७८ | २३८. आभियोगी भावना २१६. उदार त्रसकाय का स्वरूप ३८० | २३६. किल्विषी भावना ४२२ २१७. बेइन्द्रिय त्रस का स्वरूप । ३८० | २४०. आसुरी भावना २१८. तेइन्द्रिय-त्रस का स्वरूप ३८२ | २४१. बाल मरण और उसका फल . ४२३ २१६. चतुरिन्द्रियं त्रस - स्वरूप ३८४ | २४२. उपसंहार ४२४ ३५६ ३५६ ४२० ४२१ ४२२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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