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________________ क्रं. विषय १४२. अनशन तप के भेद-प्रभेद १४३. ऊनोदरी तप १४४. भिक्षाचर्या तप १४५. रसपरित्याग १४६. कायक्लेश १४७. प्रतिसंलीनता १४८. आभ्यंतर तप के भेद १४६. प्रायश्चित्त के भेद १५०. विनय का स्वरूप १५१. वैयावृत्य १५२. स्वाध्याय .१५३. ध्यान १५४. व्युत्सर्ग १५५. तपाचरण का फल चरणविधि नामक इकत्तीसवाँ १५६. चारित्र विधि का महत्त्व पहला बोल दूसरा बोल तीसरा बोल चौथा बोल पांचवां बोल Jain Education International अध्ययन २४६ - २६० २४६ पृष्ठ क्रं. २३४ २३६ २४१ २४३ २४३ २४५ २४५ २४६ २४६ २४६ २४७ २४७ २४७ २४८ छठा बोल सातवां बोल आठवां- नौवा - दसवां बोल [19] २५० २५० २५० २५१ २५२ २५३ २५३ २५४ विषय पृष्ठ २५५ ग्यारहवां-बारहवां बोल तेरहवां-चौदहवां-पन्द्रहवां बोल २५५ सोलहवां- सतरहवां बोल २५६ अठारहवां- उन्नीसवां - बीसवां बोल २५६ इक्कीसवां - बाईसवां बोल २५७ तेईसवां - चौबीसवां बोल २५७ पच्चीसवां - छब्बीसवां बोल २५८ २५८ २५९ इकतीस-बत्तीस - तैतीसवां बोल २५६ २६० For Personal & Private Use Only सत्ताईसवां - अट्ठाईसवां बोल उनतीसवां- तीसवां बोल १५७. उपसंहार प्रमादस्थान नामक बत्तीसवां अध्ययन २६१-२६८ १५८. दुःख मुक्ति व सुख प्राप्ति का उपाय २६२ १५६. दुःख का मूल २६५ १६०. मोह - उन्मूलन के उपाय २६७ १६१. कामभोगों की भयंकरता २७१ २७१ १६२. इन्द्रिय विषयों के प्रति वीतरागता १६३. शब्द के प्रति रागद्वेष से मुक्त होने का उपाय १६४. गंध के प्रति राग-द्वेष से मुक्त होने का उपाय १६५. रस के प्रति राग-द्वेष से मुक्त होने का उपाय १६६. स्पर्श के प्रति राग-द्वेष से मुक्त - होने का उपाय २७१ २८० २८४ २८७ www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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