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सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - वाचना १८३ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 के साथ मैत्रीभाव उत्पन्न करता है और मैत्रीभाव को उपगत-प्राप्त हुआ जीव अपने भावों को विशुद्ध बना कर निर्भय हो जाता है।
विवेचन - प्राणाः द्वि त्रि चतुः प्रोक्ताः, भूतास्तु तरवः स्मृताः। जीवाः पंचेन्द्रिया प्रोक्ताः, शेषाः सत्त्वा उदीरिताः॥
अर्थ - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय को 'प्राण' कहते हैं। वनस्पति को 'भूत' और पंचेन्द्रिय को 'जीव' तथा पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वाउकाय को 'सत्त्व' कहते हैं। जहाँ ये चारों शब्द आवें वहाँ उपरोक्त अर्थ करना चाहिए। किन्तु जहाँ इन चारों में से कोई एक शब्द आवे वहाँ एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक सभी जीवों का ग्रहण कर लेना चाहिए। ___ प्रस्तुत बोल में क्षमा के फल का वर्णन किया गया है। किसी से अपराध होने पर प्रतीकार का सामर्थ्य रखते हुए भी उसकी, उपेक्षा कर देना अर्थात् किसी प्रकार का दंड देने के लिए उद्यत न होना क्षमा कहलाती है।
१८. स्वाध्याय सज्झाए णं भंते! जीवे किं जणयह? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! स्वाध्याय करने से जीव को क्या लाभ होता है? सज्झाएणं णाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ॥१८॥ भावार्थ - उत्तर. - स्वाध्याय करने से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है।
विवेचन - स्वाध्याय का अर्थ है - १. शोभनः अध्यायः - अध्ययनं-स्वाध्यायः अर्थात् शुभ-सुंदर (श्रेष्ठ) अध्ययन स्वाध्याय है।
२. सुष्ठु आ मर्यादया-कालवेलापरिहारेण पौरुष्यपेक्षया वा अध्यायः स्वाध्याय (धर्मसंग्रह अधि० ३) - काल मर्यादा पूर्वक अकाल वेला को छोड़कर स्वाध्याय पौरुषी की अपेक्षा से सम्यक् प्रकार से अध्ययन करना स्वाध्याय है। ३. स्वस्य स्वस्मिन् अध्यायः - स्व का स्व में अध्ययन करना स्वाध्याय है।
. ११. वाचना वायणाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
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