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________________ १८० __उत्तराध्ययन सूत्र - उनतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 पच्चक्खाणेणं आसवदाराई णिरुंभइ, पच्चक्खाणेणं इच्छाणिरोहं जणयइ इच्छाणिरोहं गए य णं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतण्हे सीइभूए विहरइ॥१३॥ कठिन शब्दार्थ - पच्चक्खाणेणं - प्रत्याख्यान से, आसवदाराई - आम्रवद्वारों का, इच्छाणिरोहं - इच्छा का निरोध, इच्छाणिरोहं गए - इच्छा का निरोध होने से, सव्वदव्वेसुसभी द्रव्यों में, विणीयतण्हे - तृष्णा रहित बना हुआ, सीइभूए - शीतीभूत। भावार्थ - उत्तर - प्रत्याख्यान करने से आस्रवद्वारों का निरोध होता है। प्रत्याख्यान करने से इच्छा का निरोध होता है। इच्छा का निरोध होने से जीव सभी पदार्थों में तृष्णारहित बना हुआ शीतीभूत - परम शांति से विचरता है। विवेचन - भविष्य में हिंसादि दोष न हों, इसके लिए वर्तमान में ही कुछ न कुछ त्याग, नियम, व्रत, तप आदि अंगीकार करना प्रत्याख्यान कहलाता है। १४ स्तव स्तुति मंगल थवथुइमंगलेणं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! स्तवस्तुतिमंगल से जीव को क्या लाभ होता है? थवथुइमंगलेणं णाण-दंसण-चरित्त-बोहिलाभं जणयई, णाण-दसणचरित्त-बोहिलाभ-संपण्णे य णं जीवे अंतकिरियं कप्पविमाणोववत्तियं आराहणं आराहेइ॥१४॥ कठिन शब्दार्थ - थवथुइमंगलेणं - स्तव स्तुति मंगल से, णाण-दसण-चरित्तबोहिलाभं- ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप बोधि लाभ, अंतकिरियं- अंतक्रिया, कप्पविमाणोववत्तियंकल्पों - वैमानिक देवों में उत्पन्न होने योग्य, आराहणं आराहेइ - आराधना करता है। भावार्थ - उत्तर - स्तवस्तुति मंगल से ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप बोधिलाभ को प्राप्त करता है। ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप बोधिलाभ को प्राप्त करने वाला जीव कल्प विमानों में (बारह देवलोक, नवग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर विमानों में) उच्च जाति का देव होता है और ज्ञानदर्शन-चारित्र की आराधना करता हुआ जीव क्रमशः अन्तक्रिया कर मोक्ष को प्राप्त करता है। विवेचन - साधारण गुणों का वर्णन करना स्तव कहलाता है। विशेष गुणों का वर्णन करना स्तुति कहलाता है। जैसे कि - तीर्थंकर भगवान् के अतिशयों का वर्णन करना। अभिधान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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