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________________ १७४ उत्तराध्ययन सूत्र - उनतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 चारों गति की दुर्गति - नारकी और तिर्यंच तो दुर्गति रूप है ही, मनुष्य की दुर्गति है - अधमाधम जाति में उत्पन्न होना और देव की दुर्गति है - किल्विषिक या परमाधामी अधम देवजाति में उत्पन्न होना। मनुष्य और देव की सुगति - मनुष्य की सुगति है - ऐश्वर्य युक्त विशिष्ट कुल में उत्पन्न होना। देव की सुगति है - अहमिन्द्र आदि पदवी को प्राप्त करना। ५ आलोचना आलोयणाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आलोचना से जीव को क्या लाभ होता है? आलोयणाए णं माया-णियाण-मिच्छा-दंसण-सल्लाणं मोक्खमग्गविग्घाणं अणंत-संसार-वद्धणाणं उद्धरणं करेइ, उज्जुभावं च जणयइ, उज्जुभाव पडिवण्णे य णं जीवे अमाई इथिवेयं णपुंसगवेयं च ण बंधइ, पुव्वबद्धं च णं णिज्जरइ॥५॥ कठिन शब्दार्थ - आलोयणाए - आलोचना से, माया-प्रियाण-मिच्छा-दंसणसल्लाणं- माया, निदान और मिथ्यादर्शन रूप शल्यों को, मोक्खमग्गविग्घाणं - मोक्षमार्ग में विघ्न डालने वाले, अणंत-संसार-वद्धणाणं - अनंत संसार को बढ़ाने वाले, उद्धरणं करेइ - निकाल फेंकता है, उज्जुभावं - ऋजुभाव को, उज्जुभावपडिवण्णे - ऋजुभाव को प्राप्त, अमाई - अमायी-माया रहित, इत्थीवेयं णपुंसगवेयं - स्त्रीवेद और नपुंसकवेद का, पुव्वबद्धंपूर्वबद्ध की, णिज्जरेइ - निर्जरा करता है। भावार्थ - उत्तर - गुरु के समक्ष अपने दोषों को प्रकाशित कर आलोचना करने से मोक्षमार्ग में विघात करने वाले और अनन्त संसार बढ़ाने वाले माया, निदान और मिथ्यात्व रूप तीनों शल्यों को उद्धृत करता है-हृदय से निकाल फेंकता है और सरल भाव को प्राप्त करता है। सरलभाव को प्राप्त हुआ जीव माया-कपटाई रहित हो जाता है, ऐसा माया-रहित जीव स्त्रीवेद और नपुंसकवेद का बंध नहीं करता और यदि कदाचित् उनका बन्ध हो चुका हो तो उनकी निर्जरा कर देता है। विवेचन - शल्य तीन कहे गये हैं। जैसे पैर आदि में चुभा हुआ कांटा जब तक नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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