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सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - निर्वेद १७१ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 ___ यहाँ पर मूल पाठ में जो ‘तीन भव' करना बताया है, उसका आशय - मनुष्य के तीन भवों को समझना चाहिए। देव भव को गिनने पर तो चार भव भी हो सकते हैं। द्रव्य लोक प्रकाश आदि ग्रंथों में क्षायिक सम्यक्त्वी के चार भव होना भी बताया है। जिनका स्पष्टीकरण ऊपर किया गया है।
२. निर्वेद णिव्वेएणं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! निर्वेद (संसार से विरक्ति) से जीव को क्या लाभ होता है?
णिव्वेएणं दिव्वमाणुस्सतिरिच्छिएसु कामभोगेसु णिव्वेयं हव्वमागच्छइ, सव्वविसएसु विरज्जइ, सव्वविसएसु विरज्जमाणे आरंभपरिग्गहपरिच्चायं करेइ, आरंभपरिग्गह-परिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिंदइ, सिद्धिमग्गं पडिवण्णे य भवइ॥२॥ - कठिन शब्दार्थ - णिव्वेएणं - निर्वेद से, दिव्वमाणुस्सतिरिच्छिएसु - देव, मनुष्य एवं तिर्यंच संबंधी, कामभोगेसु - कामभोगों में, सव्वविसएसु - सभी विषयों में, विरज्जइ - विरक्त होता है, विरज्जमाणे - विरक्त होता हुआ, आरंभपरिग्गहपरिच्चायं - आरम्भ परिग्रह का त्याग, संसारमग्गं - संसार के मार्ग का, वोच्छिंदइ - विच्छेद कर देता है, सिद्धिमग्गं - सिद्धि मार्ग को, पडिवण्णे - प्रतिपन्न - ग्रहण करने वाला।
भावार्थ - उत्तर - निर्वेद से जीव देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी समस्त प्रकार के कामभोगों में शीघ्र ही निर्वेद को प्राप्त हो जाता है और सभी विषयों से विरक्त हो जाता है। सभी विषयों से विरक्त होता हुआ जीव आरम्भ-परिग्रह का त्याग कर देता है, आरम्भ परिग्रह का त्याग करता हुआ संसार-मार्ग का अर्थात् भवपरम्परा का व्यवच्छेद-नाश कर डालता है और सिद्धि मार्ग - मोक्ष मार्ग का प्रतिपन्न - पथिक बन जाता है।
विवेचन - निर्वेद शब्द के विभिन्न अर्थ इस प्रकार मिलते हैं - १. सांसारिक विषयों के त्याग की भावना (बृहदवृत्ति ५७८) २. संसार, शरीर और भोगों से विरक्ति (मोक्षप्राभृत ८२ टीका) ३. समस्त अभिलाषाओं का त्याग (पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध ४४३)। ..
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