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सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - संवेग १६६ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 (गुणीजनों की स्तुति) १५. काल प्रतिलेखनता १६. प्रायश्चित्तकरण १७. क्षमापना १८. स्वाध्याय १६. वाचना २०. प्रतिपृच्छना (प्रश्नोत्तर) २१. परिवर्तना २२. अनुप्रेक्षा २३. धर्मकथा २४. श्रुत की आराधना २५. एकाग्र मन सन्निवेशनता (भन की एकाग्रता) २६. संयम २७. तप २८. व्यवदान (कर्मों की निर्जरा) २६. सुखशात (वैषयिक सुखों से निवृत्ति) ३०. अप्रतिबद्धता ३१. विविक्त शय्या आसन का सेवन ३२. विनिवर्तना (पापकर्मों से निवृत्त होना) ३३. संभोग प्रत्याख्यान ३४. उपधि प्रत्याख्यान ३५. आहार प्रत्याख्यान ३६. कषाय प्रत्याख्यान ३७. योग प्रत्याख्यान ३८. शरीर प्रत्याख्यान ३६. सहाय-प्रत्याख्यान. ४०. भक्तप्रत्याख्यान ४१. सद्भाव प्रत्याख्यान ४२. प्रतिरूपता (मन वचन काया की एकता) ४३. वैयावृत्य ४४. सर्वगुण सम्पन्नता ४५. वीतरागता ४६. क्षमा ४७. मुक्ति (निर्लोभता) ४८. आर्जव (सरलता) ४६. मार्दव ५०. भाव सत्य ५१. करण सत्य ५२. योग सत्य ५३. मनोगुप्तता (मन गुप्ति) ५४. वागगुप्तता (वचन गुप्ति) ५५. कायगुप्तता (काय गुप्ति) ५६. मनः समाधारणता ५७. वाक् (वचन) समाधारणता ५८. काय-समाधारणता ५६. ज्ञान-सम्पन्नता ६०. दर्शन-सम्पन्नता ६१. चारित्रसम्पन्नता ६२. श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह ६३. चक्षुइन्द्रिय निग्रह ६४. घ्राणेन्द्रिय निग्रह ६५. जिह्वा इन्द्रिय निग्रह ६६. स्पर्शनेन्द्रिय निग्रह ६७. क्रोध विजय ६८. मान विजय ६६. माया विजय ७०. लोभ विजय ७१. प्रेमद्वेष-मिथ्यादर्शन विजय - प्रेम (राग) द्वेष तथा मिथ्यादर्शन का विजय ७२. शैलेशी अवस्था ७३. अकर्मता (कर्मरहित अवस्था)।
१. सवेग ___ संवेगेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
कठिन शब्दार्थ - भंते! - हे भगवन्! संवेगेणं - संवेग (मोक्षाभिलाषा) से, जीवे - जीव को, किं - क्या, जणयइ - प्राप्त होता है।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! संवेग भाव से जीव को क्या लाभ होता है? - संवेगेणं अणुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ, अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हव्वमागच्छइ, अणंताणुबंधी कोह-माण-माया-लोभे खवेइ, णवं च कम्मं ण बंधइ, तप्पच्चइयं च मिच्छत्तविसोहि काऊण दंसणाराहए भवइ, दंसणविसोहिएणं विसुद्धाए अत्थेगइए जीवे तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वायइ
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