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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - उनतीसवाँ अध्ययन सामायिक, चउवीसत्थए - चतुर्विंशति (जिन) स्तव, वंदणए - वंदना, पडिक्कमणे प्रतिक्रमण, काउस्सग्गे - कायोत्सर्ग, पंच्चक्खाणे प्रत्याख्यान, थवथुइमंगले -स्तुतिमंगल कापडिया काल प्रतिलेखनता, पायच्छित्तकरणे - प्रायश्चित्तकरण, खमावणया क्षमापना, सज्झाए - स्वाध्याय, वायणया वाचना, पडिपुच्छणया प्रतिपृच्छा, परियट्टणयापरावर्तना- पुनरावृत्ति, अणुप्पेहा - अनुप्रेक्षा, धम्मकहा धर्मकथा, सुयस आराहणया श्रुत-आराधना, एगग्गमणसण्णिवेसणया एकाग्र मन की सन्निवेशना, संजमे - संयम, तवेतप, वोदाणे - व्यवदान - कर्मों की निर्जरा, सुहसाए - सुखशाता, अप्पडिबद्धया - अप्रतिबद्धता, विवित्तसयणासणसेवणया - विविक्त शयन आसन सेवन, विणियट्टणया - विनिवर्तना, संभोगपच्चक्खाणे - सम्भोग प्रत्याख्यान, उवहिपंच्चक्खाणे - उपधि (उपकरण) का प्रत्याख्यान, आहारपच्चक्खाणे आहार प्रत्याख्यान, कसायपच्चक्खाणे. कषाय प्रत्याख्यान, जोगपच्चक्खाणे - योग- प्रत्याख्यान, सरीरपच्चक्खाणे शरीर प्रत्याख्यान, सहायपच्चक्खाणेसहाय प्रत्याख्यान, भत्तपच्चक्खाणे - भक्त प्रत्याख्यान - भोजन का त्याग, सब्भावपच्चक्खाणे- . सद्भाव प्रत्याख्यान, पडिरूवणया- प्रतिरूपता, वेयावच्चे - वैयावृत्य (सेवा), सव्वगुणसंपण्णयासर्वगुण सम्पन्नता, वीयरागया - वीतरागता, खंती - क्षांति (क्षमा), मुत्ती मुक्ति (निर्लोभता), अज्जवे - ऋजुता सरलता, मद्दवे - मृदुता, भावसच्चे भाव सत्य, करणसच्चे करणसत्य, जोगसच्चे - योगसत्य, मणगुत्तया मन गुप्ति, वयगुत्तया वचन गुप्ति, कायगुत्तयाकाय गुप्ति, मणसमाधारणया मनसमाधारणता, वयसमाधारणया - वचन समाधारणता, काय समाधारणता, णाणसंपण्णया दंसण संपण्याज्ञान सम्पन्नता, दर्शन सम्पन्नता, चरित्तसंपण्णया चारित्र सम्पन्नता, सोइंदियणिग्गहे - श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह, चक्खिदियणिग्गहे - चक्षुइन्द्रिय निग्रह, घाणिंदियणिग्गहे - घ्राणेन्द्रिय निग्रह, जिब्भिंदियणिग्गहेजिह्वेन्द्रिय निग्रह, फासिंदियणिग्गहे - स्पर्शनेन्द्रिय निग्रह, कोहविजए - क्रोध-विजय, माणविजएमानविजय, मायाविज मायाविजय, लोहविजए - लोभ विजय, पेज्जदोसमिच्छादंसणविजए - प्रिय (राग) द्वेष मिथ्यादर्शन विजय, सेलेसी शैलेशी, अकम्मया - अकर्मता । कायसमाधारणया भावार्थ उस सम्यक्त्व पराक्रम नामक अध्ययन का यह अर्थ है, जो इस प्रकार कहा जाता है, यथा १. संवेग २. निर्वेद ३. धर्म श्रद्धा ४. गुरु और साधर्मियों की सेवा शुश्रूषा ५. आलोचना ६. निन्दा ७. गर्हा ८. सामायिक ६. चतुर्विंशति - स्तव ( चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति) १०. वन्दना ११. प्रतिक्रमण १२. कायोत्सर्ग १३. प्रत्याख्यान १४. स्तव स्तुतिमंगल १६८ Jain Education International - - - - - - - - For Personal & Private Use Only - - - - - - www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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