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मोक्षमार्ग गति - सम्यक्चारित्र का स्वरूप
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सम्यक्रचारित्र का स्वरूप सामाइयत्थ पढम, छेओवट्ठावणं भवे बीयं। परिहारविसुद्धीयं, सुहुमं तह संपरायं च॥३२॥ अकसायमहक्खायं, छउमत्थस्स जिणस्स वा। एयं चयरित्तकरं, चारित्तं होइ आहियं ॥३३॥
कठिन शब्दार्थ - अत्थ - इसमें, सामाइयं - सामायिक, पढमं - प्रथम, छेओवट्ठावणंछेदोपस्थापनीय, भवे - होता है, बीयं - दूसरा, परिहारविसुद्धीयं - परिहार विशुद्धि, सुहमं संपरायं - सूक्ष्म संपराय।
अकसायं - कषाय रहित, अहक्खायं - यथाख्यात, छउमत्थस्स - छद्मस्थ के, जिणस्स - जिन के, चरित्तं - चारित्र, चयरित्तकरं - चयरिक्तकर - संचित कर्मराशि को रिक्त करने वाला, होइ - होता है, आहियं - कहा है।
भावार्थ - अब चारित्र के भेदों का वर्णन किया जाता है - अथ-इसके बाद चारित्र में पहला सामायिक, दूसरा छेदोपस्थापनीय, तीसरा परिहारविशुद्धि, चौथा सूक्ष्मसंपराय चारित्र है। कषाय के क्षय या उपशम से होने वाला पाँचवाँ यथाख्यात चारित्र ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थानवर्ती छद्मस्थ मुनि के अथवा केवली भगवान् के होता है। यह पाँचों प्रकार का चारित्र चयरिक्त कर - संचित कर्मों के खजाने को रिक्त (खाली) करने वाला अर्थात् कर्मों का नाश करने वाला है, ऐसा जिनेन्द्र भगवान् ने फरमाया है। - विवेचन - इन पांच चारित्रों का विस्तृत रूप से वर्णन भगवती सूत्र के शतक २५ उद्देशक ७ में तथा ठाणांग सूत्र ५ उद्देशक २ में हैं। जिज्ञासुओं को वहाँ से देखना चाहिए। संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है - ___ चारित्र की व्याख्या और भेद - चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से होने वाले विरति परिणाम को चारित्र कहते हैं।
अन्य जन्म में ग्रहण किये हुए कर्म संचय को दूर करने के लिए मोक्षाभिलाषी आत्मा का सर्व सावध योग से निवृत्त होना चारित्र कहलाता है। ___ चारित्र के पांच भेद हैं - १. सामायिक चारित्र २. छेदोपस्थापनीय चारित्र ३. परिहार विशुद्धि चारित्र ४. सूक्ष्म सम्पराय चारित्र और ५. यथाख्यात चारित्र।
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