SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ उत्तराध्ययन सूत्र - अट्ठाईसवाँ अध्ययन c00000OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO विचिकित्सा के भी दो अर्थ है - १. धर्मफल में संदेह करना और २. जुगुप्सा-घृणा। द्वितीय अर्थ का आशय है - रत्नत्रय से पवित्र साधु-साध्वियों के शरीर को मलिन देख कर घृणा करना या सुदेव, सुगुरु सुधर्म आदि की निन्दा करना भी विचिकित्सा है। ४. अमूढदृष्टि - देवमूढता, गुरुमूढता, धर्ममूढता, शास्त्रमूढता, लोकमूढता आदि मूढताओं - मोहमयी दृष्टियों से रहित होना अमूढदृष्टि है। देवमूढता - रागी-द्वेषी देवों की उपासना करना, गुरुमूढता - आरम्भ-परिग्रह में आसक्त, हिंसादि में प्रवृत्त, मात्र वेषधारी साधु को गुरु मानना, धर्ममूढता - अहिंसादि शुद्ध धर्मतत्त्वों को धर्म न मानकर हिंसा, आरम्भ, आडम्बर, प्रपंच आदि से युक्त सम्प्रदाय या मत-पंथ को या स्नानादि आरम्भजन्य क्रियाकाण्डों या अमुक वेश को धर्म मानना धर्ममूढता है। शास्त्रमूढता - हिंसादि की प्ररूपणा करने वाले या असत्य-कल्पनाप्रधान, अथवा राग-द्वेष युक्त अल्पज्ञों द्वारा जिनाज्ञा-विरुद्ध प्ररूपित ग्रन्थों को शास्त्र मानना। लोकमूढता - अमुक नदी या समुद्र में स्नान, अथवा गिरिपत्तन आदि लोकप्रचलित कुरूढ़ियों या कुप्रथाओं को धर्म मानना। किन्हीं-किन्हीं आचार्यों के अनुसार मूढता का अर्थ - एकान्तवादी, कुपथगामियों तथा षड़ायतनों (मिथ्यात्व, मिथ्यादृष्टि, मिथ्याज्ञान, मिथ्याज्ञानी, मिथ्याचारित्र, मिथ्याचारित्री) की प्रशंसा स्तुति, सेवा या सम्पर्क अथवा परिचय करना भी है। ५. उपबृंहण - इसके अर्थ हैं - १. प्रशंसा २. वृद्धि ३. पुष्टि। यथा - १. गुणीजनों की प्रशंसा करके उनके गुणों को बढ़ावा देना २. अपने आत्मगुणों (क्षमा, मृदुता आदि) की वृद्धि करना ३. सम्यग्दर्शन की पुष्टि करना। कई आचार्य इसके बदले उपगूहन मानते हैं। जिसका अर्थ है - १. परदोषों का निगूहन करना, अथवा अपने गुणों का गोपन करना। ६. स्थिरीकरण - सम्यक्त्व अथवा चारित्र से चलायमान हो रहे व्यक्तियों को पुनः उसी मार्ग में स्थिर कर देना या उसे अर्थादि का सहयोग देकर धर्म में स्थिर करना स्थिरीकरण है। ७. वात्सल्य - अहिंसादि धर्म अथवा साधर्मिकों के प्रति हार्दिक एवं निःस्वार्थ अनुराग, वत्सलभाव रखना तथा साधर्मिक साधुवर्ग की या श्रावकवर्ग की सेवा करना। ८. प्रभावना - प्रभावना का अर्थ है - १. रत्नत्रय से अपनी आत्मा को भावित (प्रभावित) करना २. धर्म एवं संघ की उन्नति के लिए चिन्तन, मंगलमयी भावना करना। आठ प्रकार के व्यक्ति प्रभावक माने जाते हैं - १. प्रवचनी २. वादी ३. धर्मकथी ४. नैमित्तिक ५. सिद्ध (मंत्रसिद्धिप्राप्त आदि) और ६. कवि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy