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________________ मोक्षमार्ग गति - सम्यक्त्व की महिमा १५५ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 उनके गति, स्थिति आदि धर्मों और श्रुतधर्म-आगम के स्वरूप एवं सामायिकादि चारित्र धर्म की श्रद्धा-प्रतीति करता है वह 'धर्मरुचि' है, ऐसा जानना चाहिए। सम्यक्त्व की श्वद्धना परमत्थसंथवो वा, सुदिट्टपरमत्थसेवणा वा वि। वावण्ण-कुदंसण-वज्जणा, य सम्मत्तसद्दहणा॥२८॥ कठिन शब्दार्थ - परमत्थसंथवो - परमार्थ का संस्तव-परिचय, सुदिट्ठपरमत्थसेवणा - . सुदृष्ट परमार्थ सेवन, वावण्ण कुदंसण वज्जणा - व्यापन्न और कुदर्शन वर्जन, सम्मत्तसद्दहणासम्यक्त्व श्रद्धान। .. भावार्थ - परमार्थ संस्तव - परमार्थ का परिचय करें अर्थात् जीवादि तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त कर उनका मनन करना और सुदृष्ट परमार्थ सेवन - सम्यक् प्रकार से तत्त्वों के ज्ञाता आचार्यउपाध्याय-साधु आदि की सेवा करना तथा व्यापन्नवर्जन - जिसने सम्यक्त्व वमन कर दिया हो अर्थात् सम्यक्त्व से पतित हुए व्यक्तियों की संगति का त्याग करना, कुदर्शन वर्जन - कुदर्शनियों (कुतीर्थियों की संगति) का त्याग करना। इन गुणों से सम्यक्त्व श्रद्धान - इससे सम्यक्त्व की प्राप्ति होती हैं और समकित की श्रद्धा की सुरक्षा होती हैं। सम्यक्त्व से पतित और कुदर्शनियों की संगति से सम्यक्त्व मलिन होती हैं। इसलिए इनकी संगति का त्याग करना ही श्रेयस्कर है। ये चार सम्यक्त्व की श्रद्धना कहलाती है। सम्यक्त्व की महिमा णत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं, दंसणे उ भइयव्वं। सम्मत्त-चरित्ताई, जुगवं पुव्वं व सम्मत्तं ॥२६॥ कठिन शब्दार्थ - णत्थि - नहीं होता, चरित्तं - चारित्र, सम्मत्तविहूणं - सम्यक्त्व के बिना, भइयव्वं - भजना, सम्मत्त-चरित्ताई - सम्यक्त्व और चारित्र, जुगवं - युगपत्-एक साथ, पुष्वं - पहले, सम्मत्तं - सम्यक्त्व। भावार्थ - सम्यक्त्व बिना चारित्र नहीं होता और सम्यक्त्व के होने पर चारित्र की भजना है। सम्यक्त्व और चारित्र युगपत् (एक साथ) भी हो सकते हैं अथवा पहले सम्यक्त्व होता है और पीछे चारित्र होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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