________________
उत्तराध्ययन सूत्र - अट्ठाईसवाँ अध्ययन
भावार्थ - जिसने द्रव्यों की समस्त पर्यायों को प्रत्यक्षादि सभी प्रमाणों से और सब नय विधि - नैगमादि नयों से जान लिया है वह 'विस्ताररुचि' वाला है, ऐसा जानना चाहिए ।
८. क्रिया रुचि दंसण - णाण चरित्ते, तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु ।
जो किरियाभावरुई, सो खलु किरियारुई णाम ॥ २५ ॥
कठिन शब्दार्थ - दंसण - णाण-चरित्ते - दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तवविणए - तप विनय, सच्चसमिइगुत्तीसु - सत्य, समिति और गुप्तियों में, किरियाभावरुई - क्रिया भाव रुचि ।
भावार्थ - जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति और गुप्ति की क्रियाओं का पालन करने में भावपूर्वक रुचि रखता है, वह निश्चय से 'क्रियारुचि' है ।
९. संक्षेप रुचि
१५४.
अणभिग्गहियकुदिट्ठी, संखेवरुइ त्ति होइ णायव्वो ।
अविसारओ पवयणे, अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥ २६ ॥
कठिन शब्दार्थ - अणभिग्गाहियकुदिट्ठी - जिसने कुदृष्टि ग्रहण नहीं की है, अविसारओअविशारद, पवयणे प्रवचन में, अणभिग्गहीओ - गृहीत बुद्धि नहीं है, सेसेसु - शेष कपिल आदि मतों पर ।
भावार्थ - जिसने मिथ्यामत का ग्रहण नहीं किया है तथा शेष जो कपिलादि के शास्त्रों का भी ज्ञाता नहीं है और जो जिन प्रवचनों में विशारद ( प्रवीण) नहीं है, किन्तु शुद्ध श्रद्धा रखता है वह 'संक्षेपरुचि' होता है, ऐसा जानना चाहिए ।
१०. धर्मरुचि
1
-
जो अत्थिकायधम्मं, सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च।
सहइ जिणाभिहियं, सो धम्मरुइत्ति णायव्वो ॥ २७ ॥
कठिन शब्दार्थ - अत्थिकायधम्मं - अस्तिकाय धर्म को, सुयधम्मं - श्रुतधर्म को, चरितधम्मं - चारित्र धर्म पर, सद्दहइ
श्रद्धा करता है, जिणाभिहियं - जिनेन्द्र कथित । भावार्थ - जो जिनेन्द्र भगवान् के कहे हुए धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि तथा
Jain Education International
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org