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________________ १२२. उत्तराध्ययन सूत्र - छब्बीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 कठिन शब्दार्थ - आरभडा - आरभटा, सम्मद्दा - सम्मर्दा, वजेयव्वा - छोड़ देना चाहिए, मोसली - मोसली - वस्त्र को दीवाल आदि से लगाना, पप्फोडणा - प्रस्फोटना, विक्खित्ता - विक्षिप्ता, वेइया - वेदिका। भावार्थ - प्रमादपूर्वक की जाने वाली प्रतिलेखना 'प्रमाद प्रतिलेखना' कहलाती है। वह छह प्रकार की है - १. विपरीत रीति से या उतावल के साथ प्रतिलेखना करना अथवा एक वस्त्र की प्रतिलेखना अधूरी छोड़ कर दूसरे वस्त्र की प्रतिलेखना करने लग जाना “आरभटा" प्रतिलेखना है। २. वस्त्र के कोने मुड़े ही रहें (सल न निकाले जायं) वह 'सम्मा ' प्रतिलेखना है अथवा उपकरणों के ऊपर बैठ कर प्रतिलेखना करना सम्मर्दा प्रतिलेखना है और ३. वस्त्र को ऊपर नीचे और तिरछे दीवाल आदि पर लगाना 'मोसली' प्रतिलेखना है। ४. जिस प्रकार धूल से भरे हुए वस्त्र को जोर से झड़काया जाता है उसी प्रकार वस्त्र को जोर से झड़काना 'प्रस्फोटना' प्रतिलेखना है। ५. प्रतिलेखना किये हुए वस्त्रों को बिना प्रतिलेखना किये हुए. वस्त्रों में मिला देना अथवा प्रतिलेखना करते समय वस्त्र के पल्ले आदि को ऊपर की ओर फेंकना 'विक्षिप्ता' प्रतिलेखना है और ६. प्रतिलेखना करते समय घुटनों के ऊपर नीचे और पसवाड़े हाथ रखना अथवा दोनों घुटनों को या एक घुटने को भुजाओं के बीच रखना 'वेदिका' प्रतिलेखना है। ये अप्रशस्त प्रतिलेखनाएँ हैं, इसलिए इनका त्याग कर देना चाहिए। प्रमाद प्रतिलेखना के भेद पसिढिलपलंबलोला, एगामोसा अणेगरूवधुणा। कुणइ पमाणि पमायं, संकिय गणणोवगं कुज्जा॥२७॥ कठिन शब्दार्थ - पसिढिल - शिथिलता से पकड़ना, पलंब - लटकाना, लोला - रगड़ना, एगामोसा - घसीटना या एक ही दृष्टि में समूचे वस्त्र को देखना, अणेगरूवधुणा - अनेक रूप से वस्त्र को धुनना-हिलाना या झटकाना, पमाणि - प्रमाण में, पमायं - प्रमाद, संकिय - शंका होने पर, गणणोवर्ग - अंगुलियों पर गिनना। भावार्थ - प्रमाद प्रतिलेखना के छह भेद आगे बताये हैं। इस गाथा में सात भेद और बताये जाते हैं - १. वस्त्र को दृढ़ता से न पकड़ना, '२. वस्त्र को दूर रख कर प्रतिलेखना करना, ३. वस्त्र को भूमि के साथ रगड़ना, ४. एक ही दृष्टि में तमाम वस्त्र को देख जाना, ५. प्रतिलेखना करते समय शरीर और वस्त्र को इधर-ऊधर हिलाना, ६. प्रतिलेखना में नवखोड़ा आदि का जो परिमाण बतलाया गया है, उसमें उपयोग न रखते हुए प्रतिलेखना करना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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