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सामाचारी - दैनिक कर्तव्य
૧૧e CONOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO0000000000000000000 आकाश के चौथे भाग पर पहुंचे तब रात्रि का एक पहर गया, ऐसा समझना चाहिए। उस समय स्वाध्याय बंद कर देना चाहिये।
तम्मेव य णक्खत्ते, गयणचउब्भागसावसेसम्मि। वेरत्तियं पिकालं, पडिलेहिता मुणी कुज्जा॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - तम्मेव णक्खत्ते - उसी नक्षत्र के, गयणघउभागसावसेसंमि - आकाश के अंतिम चतुर्थ भाग में, वेरत्तियं - वैरात्रिक।
भावार्थ - उसी नक्षत्र के अर्थात् जो नक्षत्र रात्रि को पूर्ण करता है जब वह आकाश के चतुर्थ भाग के चौथे भाग पर आ जाय तब मुनि वैरात्रिक काल देख कर प्रतिक्रमण करे।
विवेचन - जो नक्षत्र सारी रात उदित रहता है वह चलते-चलते आकाश का केवल चौथा भाग शेष रहे वहाँ (चौथी पोरिसी में) आ पहुंचे तब समझना चाहिये कि अब पहर रात्रि शेष है और उसी समय स्वाध्याय में लग जाना चाहिए। उस पोरिसी के चौथे भाग में (दो घड़ी रात शेष रहने पर) मुनि को प्रतिक्रमण करना चाहिए। ___रात्रि के मुख काल को प्रदोष काल कहते हैं, वह प्रातः और सायं के संधिकाल में होता है। ... • दैनिक कर्तव्य
पुविल्लम्मि घउन्माए, पडिलेहिताण भंडयं। गुरु वंदित्तु सज्झायं, कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ॥२१॥
कठिन शब्दार्थ - गुरु वंवितु - गुरु को वंदना करके, दुक्खविमोक्खणं - दुःखों से मुक्त कराने वाली। ..
भावार्थ - साधु का दैनिक कर्तव्य - पहले पहर के चौथे भाग में भण्डोपकरणों की प्रतिलेखना करके गुरु को वन्दना करे फिर सभी दुःखों से मुक्त कराने वाली स्वाध्याय करे।
पोरिसीए घउन्माए, वंदित्ताण तो गुरुं। अपडिक्कमित्ता कालस्स, भाषणं पहिलेहए॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - अपडिक्कमित्ता - प्रतिक्रमण किये बिना, भाषणं - पात्रों की, पडिलेहए - प्रतिलेखना करे।
भावार्थ - पहले पहर के चौथे भाग में (जब पौन पोरिसी हो जाय) तंब गुरु महाराज को वन्दना कर के स्वाध्याय-काल से निवृत्त न हो कर पात्रों की प्रतिलेखना करे।
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