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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - छब्बीसवाँ अध्ययन रोगी आदि की वैयावृत्य करने में लगादें अथवा आप चाहें तो मुझे स्वाध्याय की आज्ञा दें। आप जिस कार्य में मुझे नियुक्त करेंगे उसी में मैं नियुक्त हो जाऊंगा। ११२ अदख उपर्युक्त गाथा ८ में 'आइच्यम्पि समुट्ठिए' शब्द के द्वारा प्रतिलेखना की समाप्ति का सूचन किया गया है। अर्थात् प्रथम प्रहर के प्रारम्भ के चतुर्थ भाग में जितना आकाश में सूर्य ऊपर उठता है, उतने समय में 'भण्डोपकरणों - पात्रों के सिवाय सभी उपकरणों' की प्रतिलेखना कर लेनी चाहिये। यहाँ पर गाथा में आए हुए 'भण्डवं' शब्द से पात्रों की उपधि के सिवाय उपकरणों को ही समझना चाहिए, क्योंकि आगे गाथा २२ में प्रथम प्रहर के अंतिम चतुर्थ भाग में पात्रों की उपधि की प्रतिलेखना करने का वर्णन आया है। PUTR गाथा में आए हुए 'सज्झाए' शब्द स्वाध्याय एवं ध्यान (अर्थों का चिंतन) का ग्रहण समझना चाहिए एवं वैयावृत्य शब्द से अन्य सभी साध्वोचित कार्यों को समझना चाहिए । यहाँ पर प्रमुख रूप से गोचरी आदि के कार्यों को वैयावृत्य में बताया गया है। वेयावच्चे णिउत्तेणं, कायव्व - मगिलायओ । सज्झाए वा णिउत्तेणं, सव्वदुक्ख विमोक्खणे ॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - कायव्वं - करे, अगिलायओ - बिना ग्लानि के, विमोक्खणे - समस्त दुःखों से विमुक्त करने वाले । भावार्थ वैयावृत्य में नियुक्त साधु को चाहिए कि वह बिना ग्लानि के वैयावृत्य करे वा स्वाय में नियुक्त साधु को चाहिए कि समस्त दुःखों से मुक्त कराने वाली स्वाध्याय दत्तचित्त हो कर लग जाय । 2 दिवसस्स चउरो भागे, भिक्खू कुज्जा वियक्खणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा, दिणभागेसु चउसु fa119911 BMW - करे, कठिन शब्दार्थ - वियक्खणो- विचक्षण, उत्तरगुणे - उत्तरगुणों की, कुज्जा दिणभागेसु - दिन के भागों में। :9 भावार्थ साधु दिन के चार भाग करे। इसके बाद दिन के चारों भागों में उत्तरगुणों का सेवन करें ( स्वाध्यायादि करे)। विवेचन कस्तुत गाथा में आये हुए 'उत्तरगुणे' शब्द से तपस्या एवं स्वाध्याय आदि उत्तरगुणों को समझना चाहिए अर्थात् "मूल गुणों को सुरक्षित रखने के लिए उत्तरगुणों की वृद्धि करे।' Jain Education International For Personal & Private Use Only सव्वदुक्ख www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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