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सामाचारी - साधु की दिनचर्या 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
अब्भुट्ठाणं गुरुपूया, अच्छणे उवसंपया। एवं दुपंचसंजुत्ता, सामायारी पवेड्या॥७॥
कठिन शब्दार्थ - गुरुपूया - गुरुपूजा, अच्छणे - विशिष्ट ज्ञानादि की प्राप्ति के लिए, दुपंचसंजुत्ता - द्विपंच संयुक्ता-दशविध अंगों से युक्त।
भावार्थ - ६. गुरुपूजा-गुरु महाराज एवं अपने से बड़े साधुओं की विनय-भक्ति करना तथा बाल, वृद्ध और ग्लान साधुओं को यथोचित आहार औषधि आदि ला कर देना 'गुरुपूजा
अभ्युत्थान' नाम की समाचारी है और १०. ज्ञानादि के लिए अन्य गच्छ के आचार्य के पास रहना ‘उपसंपदा' समाचारी है। इस प्रकार २४५=१० दस प्रकार की समाचारी कही गई है।
साधु की दिनचर्या पुव्विल्लम्मि चल्भाए, आइच्चम्मि समुट्ठिए। भंडयं पडिलेहित्ता, वंदित्ता य तओ गुरुं॥॥ पुच्छिज्ज पंजलिउडो, किं कायव्वं मए इह। इच्छं णिओइउं भंते! वेयावच्चे व सज्झाए॥६॥
कठिन शब्दार्थ - पुविल्लंमि - दिन के प्रथम प्रहर के, चउन्माए - चतुर्थ भाग में, आइच्चम्मि - आदित्य-सूर्य के, समुटिए - ऊपर उठने पर, भंडयं - भण्डोपकरण की, पडिलेहित्ता - प्रतिलेखना करके।
पुच्छिज्ज - पूछे, पंजलिउडो - हाथ जोड़ कर, किं कायव्वं - क्या करना चाहिए, इच्छं - इच्छानुसार, णिओइडं - नियुक्त करें, वेयावच्चे - वैयावृत्य, सज्झाए - स्वाध्याय में।
भावार्थ - आदित्य-सूर्य के उदय होने पर प्रथम प्रहर के चौथे भाग में भंडोपकरण की प्रतिलेखना करे उसके बाद गुरु महाराज को वंदना करके हाथ जोड़ कर पूछे कि - "हे भगवन्! इस समय मुझे क्या करना चाहिए? स्वाध्याय और वैयावृत्य, इन दोनों में से किस कार्य में आप मुझे नियुक्त करना चाहते हैं? आपकी इच्छानुसार आज्ञा दीजिये ।' - विवेचन - दिन के चार प्रहरों में से प्रथम प्रहर के चौथे भाग यानी दो घड़ी सूर्य चढ़ जाने पर, अपने वस्त्र आदि धर्मोपकरणों का प्रतिलेखन करके शिष्य आचार्य आदि गुरु भगवंत को वंदन करके विनयपूर्वक पूछे कि भगवन्! अब मुझे क्या करना है? आप चाहें तो मुझे ग्लान,
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