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________________ ११० उत्तराध्ययन सूत्र - छब्बीसवाँ अध्ययन Colonitouciccoccorecrusuvationawaisioinciscessorumencesson भावार्थ - १. बाहर जाने में आवश्यकी समाचारी करे अर्थात् आवश्यक कार्य के लिए अपने स्थान से बाहर जाते समय साधु को 'आवस्सिया आवस्सिया' कहना चाहिए अर्थात् मैं आवश्यक कार्य के लिए जाता हूँ। २. स्थान में नैषेधिकी समाचारी करे अर्थात् बाहर से लौट कर अपने स्थान में प्रवेश करते समय साधु को 'णिसीहिया णिसीहिया' कहना चाहिए (अब मैं बाहर के कार्यों से निवृत्त हो गया हूँ)। ३. स्वयं कार्य करने के लिए आपृच्छना समाचारी करनी चाहिए अर्थात् किसी भी कार्य में प्रवृत्ति करने से पहले गुरु से पूछना चाहिये कि क्या मैं यह कार्य करूं?' इत्यादि। ४. दूसरे मुनियों का कार्य करने के लिए प्रतिपृच्छना समाचारी करनी चाहिए अर्थात् दूसरे मुनि का जो कार्य करने के लिए गुरु ने पहले आज्ञा फरमाई हो उस कार्य में प्रवृत्ति करते समय गुरु महाराज से फिर पूछना कि 'हे भगवन्! मैं अमुक मुनि का अमुक कार्य करूं?' इस प्रकार पूछना प्रतिपृच्छना है। फिर से पूछने का अभिप्राय यह है कि कदाचित् वह कार्य किसी दूसरे मुनि ने कर दिया हो अथवा इस समय गुरु किसी दूसरे कार्य के लिए आज्ञा प्रदान करें' इसलिए प्रतिपृच्छना समाचारी का सेवन करना चाहिए। छंदणा दव्वजाएणं, इच्छाकारो य सारणे। .. मिच्छाकारो य जिंदाए, तहक्कारो पडिस्सुए॥६॥ . कठिन शब्दार्थ - दव्वजाएणं - भिक्षा में प्राप्त द्रव्यों की, सारणे - स्वयं का कार्य करने या दूसरों का कार्य करवाने में, जिंदाए - आत्म निंदा करने में, पडिस्सुए - प्रतिश्रुतगुरुजनों की बात स्वीकार करने में। भावार्थ - ५. अशन-पान-खादिम-स्वादिम आदि के लिए दूसरे साधुओं को निमंत्रण देना छंदना समाचारी है जैसे - यदि आपके उपयोग में आ सके तो मेरे इस आहार में से ग्रहण कीजिये और ६. स्वयं कार्य करने में अथवा दूसरों से कोई कार्य करवाने में इच्छाकार समाचारी की जाती है जैसे - 'हे भगवन्! यदि आपकी इच्छा हो तो आप मुझे ज्ञानादि दे कर मुझ पर उपकार करें इस प्रकार पूछना 'इच्छाकार' समाचारी है। ७. कोई दोष लग जाने पर आत्मनिंदा करना 'मिथ्याकार' समाचारी है। यदि साधुवृत्ति से विपरीत आचरण हो गया हो तो उसके लिए 'मिच्छामि दुक्कडं' देना पश्चात्ताप करना तथा आत्मनिन्दा करना कि 'मेरी आत्मा को धिक्कार हो जो मैंने अमुक अकार्य किया,' यह मिथ्याकार समाचारी कहलाती है और ८. गुरु महाराज के वचनों को सुन कर तहत्ति' या 'तथास्तु' कहना 'तथाकार' समाचारी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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