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सामाचारी' मा
साधु की दिनचर्या
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पढमं पोरिसी संज्झायं, बीयं झाणं झियायइ। तइयाए भिक्खायरियं, पुणो चउत्थीइ सज्झायं॥१२॥
कठिन शब्दार्थ "पढम - प्रथम, पोरिसी - पौरूषी-प्रहर में, सज्झायं - स्वाध्याय, बीयं - दूसरी, झाणं झियायई - ध्यान करे, भिक्खायरियं - भिक्षाचरी, चउत्थीइ - चतुर्थ प्रहर में।
भावार्थ - प्रथम पहुर में स्वाध्याय करे। दूसरे पहर में ध्यान करे। तीसरे पहर में भिक्षाचर्या करे और चौथे पहर में पुनः स्वाध्याय करे।
विवेचन - यह गाथा सामान्य कथन की है अर्थात् इस गाथा में दिन के चार भाग बतला, कर चार कार्य बतलाये हैं. परन्तु यदि ये चार ही कार्य करे तो प्रतिलेखन, स्थण्डिल भूमि को जाना, विहार करना, बीमार साधु-साध्वी की सेवा करना आदि कार्य कब करें? अतः यह गाथा सामान्य रूप से कही गई है। क्योंकि- अगली गाथाओं में प्रतिलेखन आदि का विधान किया गया है। - तीसरे प्रहर में ही गोचरौं जाना यह एकान्त नियम नहीं है। क्योंकि दशवैकालिक सूत्र के ५वें अध्ययन में बतलाया गया है कि - जिस गांव में भोजन का जो समय हो उस समयगोचरी जाना चाहिये। मुनि को सम्बोधित कर शास्त्रकार ने फरमाया है कि हे मुने!' यदि गोधरी के समय का ध्यान नहीं रखोगे तो अपनी आत्मा को भी क्लेशित करोगे और उस गांव की भी निंदा करोगे।' अतः दशवैकालिक सूत्र के पांचवें अध्ययन के दूसरे उद्देशक की चौथी गाथा में कहा है - .. ..
कालेण णिवखमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे अकालं च विवज्जित्ता, काले कालं समायरे॥४॥
जिस समय गृहस्थों के घर भोजन बन जाय और गृहस्थ भोजन करने लग जाय तब गोबरी के जावे और नियत समय पर वापिस लौट आवे। गोचरी के समय, गोचरी और स्वाध्याय के समम स्वाध्याय करें। अकाल का विवर्जन करे। ___दूसरी बात यह भी है कि - भगवती सूत्र शतक ७ उद्देशक १ में साधु के लिए कालातिक्रांत दोष बताया है जिसका अर्थ है कि पहले, प्रहर में लाया हुआ आहार पानी चौथे प्रहर में करता है तो साधु साध्वी को कालातिकांत दोष लगता है और उसका प्रायश्चित्त आता है। इसलिए यदि तीसरे प्रहर में ही गोचरी जान का एकान्त नियम होता तो पहले प्रहर में गोचरी
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