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सामायारी णामं छत्वीसइमं अज्झयणं सामाचारी नामक छब्बीसवाँ अध्ययन
प्रस्तुत अध्ययन में श्रमण के दिन एवं रात्रि के आठ प्रहर की सम्यक् चर्या का वर्णन है । ध्यान, स्वाध्याय, भिक्षाचरी, भोजन, प्रतिलेखन आदि कब, किस स विधि से करना, इसका सांगोपांग निरूपण इस अध्ययन में है। आचार में - विवेक का महत्त्व बताने के कारण इस
अध्ययन का नाम 'सामाचारी' रखा गया है। यह सामाचारी प्राण की तरह संयमी जीवन की
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सहचारिणी, तन, मन, वचन को स्वस्थ, संतुलित, शांत और संघीय जीवन को व्यवस्थित रखने व्याख्याओं में इसे
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वाली है। संसार सागर पार करने के लिये पंचाचारमयी तरणी है। 'चक्रवाल सामाचारी' कहा गया है। इस अध्ययन की प्रथम गाथा इस प्रकार है
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सामाचारी का स्वरूप
सामायारिं पवक्खामि, सव्व - दुक्ख - विमोक्खणिं ।
जं चरित्ताण णिग्गंथा, तिष्णा संसारसागरं ॥१॥
कठिन शब्दार्थ - सामायारिं - सामाचारी का, पवक्खामि - मैं कथन करूंगा, सव्वदुक्ख विमोक्खणि समस्त दुःखों से कराने वाली, चरित्ताण आचरण करके, मुक्त 'णिग्गंथा - निग्रंथ मुनि, तिण्णा - तिर गये, संसार सागरं - संसार सागर को ।'
भावार्थ - सभी दुःखों से छुड़ाने वाली समाचारी कहूँगा जिसका सेवन करके अनेक निर्ग्रन्थ मुनि संसारसागर को तिर गये हैं। इसी प्रकार इसका सेवन करके अनेक निर्ग्रन्थ मुनि वर्तमान काल में संसार सागर से पार हो रहे हैं और आगामी काल में भी पार होंगे।
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विवेचन सामाचारी का विशेष अर्थ इस प्रकार है
१. सम्यक् आचरण समाचार
कहलाता है 'अर्थात् शिष्टाचरित क्रिया-कलाप, उसका भाव है - सामाचारी । २. साधु वर्ग की इति कर्त्तव्यता अर्थात् कर्त्तव्यों की सीमा ३. समयाचारी आगमोक्त अहोरात्र
क्रियाकलाप
सूचिका ४. साधु जीवन के आचार व्यवहार की सम्यक् व्यवस्था ।
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