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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - पच्चीसवाँ अध्ययन हिंसादि कुकृत्यों में प्रवृत्ति करने वाले शील रहित पुरुष की दुर्गति से रक्षा नहीं कर सकते क्योंकि कर्म बड़े बलवान् होते हैं, वे अपना फल दिये बिना नहीं रहते । विवेचन - पूर्वोक्त प्रकार से हिंसक यज्ञों में किये हुए पशुवधादि दुष्ट कर्म के कर्त्ता को बलात् नरक आदि दुर्गतियों में ले जाते हैं। क्योंकि वेद और यज्ञ में पशुवधादि होने से दुष्कर्म अत्यंत बलवान् होते हैं। अतः ऐसे यज्ञ करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता । वेदों में भी अनेक स्थलों में पशुओं के वध से युक्त यज्ञों का वर्णन हुआ है। इसका विस्तार से वर्णन पू० श्री आत्मारामजी म. सा. के उत्तराध्ययन सूत्र की इस गाथा की हिंदी टीका में किया गया है। जिज्ञासुओं के लिए वह द्रष्टव्य है। १०० श्रमण ब्राह्मण आदि किन गुणों से होते हैं? ण वि मुंडिएण समणो, ण ओंकारेण बंभणो । ण मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण ण तावसो ॥ ३१ ॥ कठिन शब्दार्थ - मुंडिएण - सिर मुंडा लेने से, समणो ओंकार का जाप करने से, बम्भणो ब्राह्मण, ण रण्णवासेणं कुसचीरेण - कुश के बने हुए चीवर पहनने से, तावसो तापस। भावार्थ मस्तक मुंडाने से कोई श्रमण नहीं होता और ओंकार का उच्चारण करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता अरण्य वास वन में निवास करने मात्र से कोई मुनि नहीं बन जाता और वृक्षों की छाल पहनने से कोई तापस नहीं होता । विवेचन ॐ या ओंकार ये शब्द ब्राह्मण संस्कृति (वैदिक संस्कृति) का है किन्तु जैन संस्कृति ( श्रमण संस्कृति) का नहीं है, क्योंकि जैनों के किसी भी आगम में ओम् शब्द का प्रयोग नहीं मिलता है तब उसका अर्थ और महात्म्य तो मिले ही कहाँ से ? ब्राह्मण संस्कृति का अनुकरण दिगम्बर जैन सम्प्रदाय ने किया और देखा-देखी अन्य जैन सम्प्रदायों ने भी की । दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता है कि ओम् शब्द में पंचपरमेष्ठी का समावेश होता है। इसके लिए उन्होंने एक गाथा प्रचलित कर रखी है। वह इस प्रकार है अरिहंता असरीरा, आयरिय तह उवज्झाय मुणिणो । पढमक्खर निप्पण्णो, ओंकारो पंच परमेडी ॥ Jain Education International - - For Personal & Private Use Only श्रमण, ण ओंकारेण न अरण्य वास करने से, - - न www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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