________________
६५
यज्ञीय - ब्राह्मण का लक्षण 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - तत्त्वज्ञ पुरुषों द्वारा जो लोक में ब्राह्मण कहा गया है और जो अग्नि के समान सदा पूजनीय होता है। तत्त्वज्ञ पुरुषों द्वारा कहे गये उसे हम माहन - ब्राह्मण कहते हैं। मा - मत हण - मारो अर्थात्-जीवों को मत मारो, मत मारो ऐसा जो उपदेश देते हैं, उसे 'माहन' कहते हैं। माहन का शब्दार्थ ब्राह्मण होता है तथा जैन मुनि को भी 'माहन' कहते हैं। . जो ण सज्जइ आगंतुं, पव्वयंतो ण सोयइ। रमए अजवयणम्मि, तं वयं बूम माहणं॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - ण सजइ - आसक्त नहीं होता, आगंतुं - आने पर, पव्वयंतो - चले जाने पर, ण सोयइ - शोक नहीं करता है, रमए - रमण करता है, अज्जवयणम्मि - आर्य वचनों में। - भावार्थ - जो पुरुष स्वजनादि के समीप आने पर उनमें आसक्त नहीं होता है और . स्वजनादि से पृथक् हो कर दूसरे स्थान जाता हुआ शोक नहीं करता किन्तु आर्य-वचनों - तीर्थंकर देव के वचनों में जो रमण करता है उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। . ....
जायरूवं जहामटुं, णिद्धंतमल-पावगं। रागद्दोसभयाईयं, तं वयं बूम माहणं॥२१॥
कठिन शब्दार्थ - जायरूवं - जात रूप - सोने की, जहामहं - जैसे कसौटी पर घिसे हुए, णिद्धतमल पावगं - पाप रूपी मल का नाश किये हुए, रागद्दोसभयाईयं - रागद्वेष, भय आदि से रहित। ..
भावार्थ - पाप रूपी मल का नाश करके जो कसौटी पर कसे हुए एवं अग्नि में डाल कर शुद्ध किये हुए जात रूप-सोने के समान निर्मल है और जो राग-द्वेष तथा भय से रहित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
विवेचन - 'जातरूप' नाम स्वर्ण का है। जैसे मनःशिला आदि रासायनिक द्रव्यों के संयोग से अग्नि में तपाने पर निर्मल होने से सुवर्ण अपने वास्तविक स्वरूप में आता हुआ सुवर्ण कहलाता है। तात्पर्य यह है कि अशुद्ध सुवर्ण को जैसे अग्नि में डाला जाता है और द्रव्यों के संयोग से उसको मल से रहित किया जाता है, फिर वह अपने असली रूप को प्रकट करने में समर्थ होता है अर्थात् लोक में वह स्वर्ण के नाम से पुकारा जाता है, ठीक इसी प्रकार साधन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org